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Home Hindu Mythology

पुण्य प्राप्ति का महापर्व अक्षय तृतीया

The Karma by The Karma
March 2, 2025
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अक्षय तृतीया का महत्व
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वो दिन जिस दिन धुल जाते हैं सारे पाप। जिस दिन पुण्य करने से खुल जाता है वैकुंठ का दरवाजा। जिस दिन भगवान विष्णु स्वयं करते हैं पाप और पुण्य का हिसाब। अक्षय तृतीया एक ऐसा महापर्व है जिसे करने एक ही दिन में भर जाता है पुण्य का घड़ा। वैशाख महीने के शुक्लपक्ष के दिन आप जो भी खरीदेंगें वो हमेशा आपका ही हो जाएगा। दोस्तों ये वो तिथि है जिस दिन सतयुग. त्रेतायुग. द्वापर युग और कलियुग की शुरुआत होती है। इस तिथि को आप जो करेंगे उसका फल तुरंत मिल जाएगा। ये हम नहीं कह रहे हैं ऐसा स्वयं भगवान विष्णु ने कहा है।

अक्षय तृतीया क्यों मनाई जाती है

पद्म पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने खुद अक्षय तृतीया क्यों मनाई जाती है इसके बारे में अपने मुख से नारद जी को अक्षय तृतीया के महत्व के बारे बताया है। उन्होंने कहा है कि अक्षय तृतीया के अवसर पर जो भी व्यक्ति जैसा कार्य करता है, उसे उसका वैसा ही फल मिलता है। वह फल अक्षय रहता है। इसीलिए इस दिन कोई भी बुरा कार्य करने से बचना चाहिए। भविष्य पुराण के अनुसार सतयुग, त्रेता और कलयुग का आरंभ अक्षय तृतीया तिथि को हुआ और द्वापर युग की समाप्ति भी इसी तिथि को हुई थी।

अक्षय तृतीया का महत्व

ऐसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान परशुराम और नर-नारायण के रुप में भगवान विष्णु ने अवतार लिया था। अक्षय तृतीया का महत्व इसलिए हर तृतीया से अधिक है क्योंकि पूरे देश में अक्षय तृतीया के दिन भगवान परशुराम की जयंती धूम-धाम से मनाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन ही मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था। पुराणों के अनुसार राजा भगीरथ ने मां गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए कठोर तप किया था। भगीरथ के तप से भगवान शिव ने ब्रह्मा जी के कमंडल से निकली गंगा को अपनी जटाओं में रोक लिया और फिर उनको पृथ्वी पर छोड़ा। कहते हैं कि अक्षय तृतीया के दिन गंगा स्नान करने से पिछले सात जन्मों के पाप धुल जाते हैं और सुख और शांति की प्राप्ति होती है।

अक्षय तृतीया की कथा

पुराणों के अनुसार अन्न प्रदान करने वाली देवी माता अन्नपूर्णा का जन्म भी अक्षय तृतीया के दिन हुआ है। अक्षय तृतीया की कथा के रूप में जो इस दिन मां अन्नपूर्णा की पूजा और धन-अन्न का दान करता है उसके भंडार कभी खाली नहीं होते। पौराणिक कथा के अनुसार अक्षय तृतीया के शुभ दिन पर ही युधिष्ठिर को अक्षय पात्र की प्राप्ति हुई थी। इसकी महत्ता ये है कि ये पात्र कभी खाली नहीं होता। इसी वजह से देश के कई इलाकों में अक्षय तृतीया के दिन से ही किसान नई फसल के लिए खेत जोतना शुरू करते हैं।

महाभारत को पंचम वेद कहा गया है। एसी मान्यता है कि महर्षि वेदव्यास ने अक्षय तृतीया के दिन से ही महाभारत लिखना शुरू किया था। महाभारत में ही श्रीमद्भागवत गीता समाहित है। माना जाता है कि इस दिन जो गीता के 18वें अध्याय का पाठ करता है उसे जीवन में कभी दुख और दरिद्रता नहीं भोगना पड़ता। ऐसा भी माना जाता है इसी दिन महाभारत का युद्ध भी खत्म हुआ था है। इसके अलावा ऐसा भी कहा जाता है कि द्रोपदी को चीरहरण से कृष्ण ने आज के ही दिन बचाया था। कृष्ण और सुदामा का मिलन भी अक्षय तृतीया पर हुआ था। अक्षय तृतीया को ही ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का अवतरण हुआ था। इसी दिन कुबेर को खजाना मिला था। इसके अलावा हर साल इसी दिन चार धामों में एक बदरीनाथ मंदिर के कपाट खुलते हैं। वृंदावन के बांकेबिहारी मंदिर में श्री विग्रह के चरण दर्शन भी केवल अक्षय तृतीया के दिन होते हैं। उसके बाद सालभर उनके चरण वस्त्रों से ढके रहते हैं।

शुभ कार्यों को करने का दिन

शुभ कार्यों के करने का दिन अक्षय तृतीया का दिन होता है इस दिन गृह-प्रवेश, कपड़े, सोने-चांदी और गहनों की खरीदारी, वाहन, जमीन, फ्लैट, दुकान की खरीदारी जैसे शुभकार्य किए जाते हैं। अक्षय तृतीया के दिन गाय, जमीन, सोना, चांदी, तिल, घी, वस्त्र, अन्न, गुड़, नमक, शहद और कन्या दान करने का विशेष महत्व है। माना जाता है कि इस दिन जितना भी दान करते हैं उसका कई गुना फल प्राप्त होता है। साथ ही अक्षय तृतीया के टोटके भी अधिक प्रभावपूर्ण होते हैं। इस दिन पितरों को किए गए तर्पण और पिंडदान का भी विशेष फल प्राप्त होता है।

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Tags: अक्षय तृतीया का महत्व

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