सारे जहाँ से अच्छा (Sare Jahan Se Achha) हिंदुस्तान हमारा गीत को लोग अक्सर देशभक्ति का प्रतीक मानते हैं, लेकिन इसकी गहराई में एक अलग अर्थ छिपा है। यह गीत 1904 में अल्लामा इकबाल ने लिखा था, जो बाद में पाकिस्तान के राष्ट्रीय कवि बने। उनके पूर्वज कश्मीरी ब्राह्मण थे, जो मुगल काल में इस्लाम में परिवर्तित हो गए। उनके पिता शेख नूर मुहम्मद भी हिंदू परिवार में जन्मे थे, लेकिन बाद में इस्लाम अपनाया। इकबाल ने चार साल की उम्र से कुरान पढ़ना शुरू किया और उनके विचारों में पैन-इस्लामिज्म की छाप साफ दिखती है। यह गीत बच्चों के लिए लिखा गया था, लेकिन इसमें उम्मा यानी इस्लामिक समुदाय की अवधारणा छिपी है, जहां राष्ट्रवाद का कोई स्थान नहीं। पैन-इस्लामिज्म वह सिद्धांत है जिसमें पूरी दुनिया के मुसलमानों को एक भाईचारे के रूप में देखा जाता है, और राष्ट्र की सीमाएं कोई मायने नहीं रखतीं। इकबाल के विचार मुगल काल से भारत को तोड़ने के षड्यंत्र का हिस्सा लगते हैं। आज भी कुछ लोग इस गीत को हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल बताते हैं, लेकिन यह वास्तव में आक्रांताओं को भारत से जोड़ने की कोशिश है। वे इसे देशभक्ति का ताज पहनाकर भारत की जनता को मानसिक गुलामी का स्वाद चखाते हैं।
बुलबुलें और गुलसिताँ: आक्रांताओं का बगीचा?
इस पंक्ति को लोग हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल मानते हैं, लेकिन इसका असली अर्थ कुछ और है। बुलबुल एक पक्षी है जो बाहर से आता है, और गुलसिताँ बगीचा है। यहां इकबाल बाहर से आए आक्रांताओं को भारत की पवित्र भूमि से जोड़ रहे हैं। हिंदू तो भारत के मूल निवासी हैं, लेकिन इकबाल आक्रांताओं को ही भारत का बगीचा बता रहे हैं। यह पैन-इस्लामिज्म की मिसाल है, जहां मुसलमानों को एक वैश्विक समुदाय के रूप में देखा जाता है। इकबाल के पूर्वज खुद हिंदू थे, लेकिन इस्लाम अपनाने के बाद वे उम्मा के सिद्धांत को बढ़ावा देने लगे। इस पंक्ति में हिंदू-मुस्लिम एकता का खंडन होता है, क्योंकि यह आक्रांताओं को भारत का हिस्सा बनाने की कोशिश है। इकबाल दिखाना चाहते हैं कि आक्रांताओं का बगीचा ही हमारी पावन मातृभूमि है, जो राष्ट्रवाद के खिलाफ है। पैन-इस्लामिज्म में राष्ट्रवाद की कोई जगह नहीं, और इकबाल इसी को बढ़ावा दे रहे थे। इस पंक्ति में भाईचारे की कोई सुगंध नहीं, बल्कि यह बाहर से आए लोगों को भारत से जोड़ने की कोशिश है।
गंगा का कारवाँ: गंगा-जमुनी तहजीब का भ्रम
इस पंक्ति में इकबाल गंगा के जल को संबोधित कर रहे हैं। कारवाँ से उनका मतलब है कि उनके विचार जब गंगा से मिले, तो गंगा-जमुनी तहजीब का जन्म हुआ। लेकिन यह तहजीब हिंदुओं को भ्रमित रखने के लिए बनाई गई थी, क्योंकि यह मुगलों और आक्रांताओं के अत्याचारों की वकालत करती है। गंगा-जमुनी तहजीब का सिद्धांत आक्रांताओं के जुल्मों को छिपाने का एक माध्यम है। इकबाल यहां सिर्फ मुसलमानों के लिए बोल रहे हैं, और यह पंक्ति उम्मा की एकता को दर्शाती है। भारत में हिंदू धर्म लोकतांत्रिक है, जहां ईश्वर को चुनने की पूरी स्वतंत्रता है। कोई बंदिश नहीं कि ईश्वर को मानना ही है; पूजा करो या अपने कर्म को निष्ठा से करो। लेकिन इकबाल मजहब यानी इस्लाम की बात कर रहे हैं। मजहब से उनका मतलब दुनिया भर के मुसलमानों में एकता है, चाहे वे तालिबान हों, पाकिस्तान के कट्टरपंथी हों, या कोई और मुस्लिम कट्टर दल। यह पंक्ति काफिरों के खिलाफ बैर की भावना को छिपाती है। यह दिखावटी एकता की बात करती है, लेकिन असल में यह मुसलमानों को एकजुट करने का संदेश देती है।
मज़हब और बैर: एकता का दिखावा, अलगाव का संदेश
इस पंक्ति में इकबाल किस मजहब की बात कर रहे हैं? भारत में कोई मजहब देवता नहीं, बल्कि हिंदू धर्म है, जहां कोई बंदिश नहीं। हिंदू धर्म में हर व्यक्ति को अपने ईश्वर को चुनने की आजादी है। लेकिन इकबाल यहां मुसलमानों में एकता की बात कर रहे हैं, और गैर-मुसलमानों यानी काफिरों के खिलाफ बैर को बढ़ावा दे रहे हैं। यह उम्मा का हिस्सा है, जहां मुसलमानों के बीच बैर नहीं, लेकिन गैर-मुसलमानों के खिलाफ संघर्ष है। इकबाल की कविता में यह पैन-इस्लामिज्म की छाप है, जो राष्ट्रवाद को पूरी तरह नकारती है। उनके विचारों में हिंदू-मुस्लिम एकता का कोई स्थान नहीं, बल्कि अलगाववाद है। यह पंक्ति दिखावटी एकता की बात करती है, लेकिन इसका असली मकसद मुसलमानों को एकजुट करना और गैर-मुसलमानों के खिलाफ एक भावना पैदा करना है। यह भारत की एकता के खिलाफ है और एकेश्वरवाद को बढ़ावा देती है।
यूनान, मिस्र, रूमा: इस्लाम की श्रेष्ठता का प्रचार
इस पंक्ति में इकबाल इस्लाम की बात कर रहे हैं। नाम-ओ-निशाँ से उनका मतलब मुसलमानों का अस्तित्व है। यूनान, मिस्र और रोमा में पहले देवी-देवताओं की पूजा होती थी, लेकिन अब्राहमिक धर्मों—ईसाई, यहूदी, और मुस्लिम—ने उन्हें मिटा दिया। यह इस्लामिक क्रांति का परिणाम था। इकबाल यहां पैन-इस्लामिज्म को बढ़ावा दे रहे हैं, जहां दुनिया के मुसलमान एक हैं। यह पंक्ति देवी-देवताओं की पूजा करने वाली सभ्यताओं के अंत को जायज ठहराती है। बचपन से हम इस गीत को देशभक्ति मानते आए हैं, लेकिन यह एकेश्वरवाद का प्रचार है। इकबाल इस्लाम की श्रेष्ठता और अन्य सभ्यताओं के विनाश को गर्व के साथ प्रस्तुत करते हैं। यह पंक्ति सनातन संस्कृति को कमतर दिखाने की कोशिश है, जो भारत की मूल भावना के खिलाफ है।
दर्द-ए-निहाँ: विक्टिम कार्ड और उम्मा का सिद्धांत
इस पंक्ति में इकबाल विक्टिम कार्ड खेल रहे हैं, कि मुसलमानों का दर्द कोई नहीं समझता। वे कहते हैं कि दुनिया सदियों से उनकी दुश्मन रही है। लेकिन भारत का दुश्मन आक्रांता रहे हैं, जिन्होंने अनेक अत्याचार किए। दुनिया आज भी एकेश्वरवाद के नाम पर चल रहे नापाक संगठनों और देशों को शत्रु मानती है। यह पंक्ति भी उम्मा के सिद्धांत को दर्शाती है, जहां मुसलमानों को एक पीड़ित समुदाय के रूप में दिखाया जाता है। इकबाल का यह दृष्टिकोण मुसलमानों को अलगाव की ओर ले जाता है, जो भारत की एकता के खिलाफ है। यह पंक्ति भावनात्मक रूप से मुसलमानों को एकजुट करने की कोशिश करती है, लेकिन इसका असर भारत की एकता को कमजोर करना है।
तैराना-ए-मिल्ली: पैन-इस्लामिज्म का खुला प्रचार
1910 में इकबाल ने तैराना-ए-मिल्ली लिखा, जिसमें पैन-इस्लामिज्म के प्रति उनका प्रेम उजागर है। पंक्तियां हैं:
चीन-ओ-अरब हमारा, हिन्दोस्ताँ हमारा
मुस्लिम हैं हम वतन है सारा जहाँ हमारा
तौहीद की अमानत सीनों में है हमारे
आसाँ नहीं मिटाना नाम-ओ-निशाँ हमारा
दुनिया के बुत-कदों में पहला वो घर ख़ुदा का
हम इस के पासबाँ हैं वो पासबाँ हमारा
यह उम्मा का सिद्धांत है, जहां काबा में मूर्तियों को तोड़ने की वकालत की गई। इकबाल ने पाकिस्तान के निर्माण का खुला समर्थन किया और कहा कि हिंदू और मुसलमान एक देश में नहीं रह सकते। उनके यह विचार टू-नेशन थ्योरी का आधार बने, जिसने भारत के विभाजन को जन्म दिया। यह गीत सनातन संस्कृति के खिलाफ एक वैचारिक हमला था, जो इस्लाम की श्रेष्ठता को स्थापित करने की कोशिश करता है।
इलाहाबाद भाषण 1930: विभाजन की नींव
1930 में मुस्लिम लीग की सभा में इकबाल ने इलाहाबाद भाषण दिया, जहां उन्होंने मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों के लिए अलग राज्य की मांग की। उन्होंने कहा कि इस्लाम का एकीकरण और सहयोग महत्वपूर्ण है, और भारत में मुस्लिम इंडिया की आवश्यकता है। यह भाषण टू-नेशन थ्योरी का आधार बना, जिसने पाकिस्तान की नींव रखी। इकबाल ने हिंदू-मुस्लिम समस्या का समाधान अलग राज्य में देखा। उनके विचारों ने मुसलमानों को अलगाववाद की ओर प्रेरित किया। यह भाषण भारत के विभाजन की दिशा में एक बड़ा कदम था। इकबाल का यह दृष्टिकोण भारत की एकता को तोड़ने का प्रयास था, जो राष्ट्रवाद के खिलाफ था।
राष्ट्रवादी दृष्टिकोण से इकबाल की आलोचना
भारतीय राष्ट्रवादियों के अनुसार, इकबाल ने राष्ट्रवाद की आलोचना की और पैन-इस्लामिज्म को बढ़ावा दिया। उन्होंने आधुनिकता को मुसलमानों के लिए गंदा शब्द बनाया। उनके विचारों में राष्ट्रवाद की कोई जगह नहीं थी, और वे इस्लामी पुनरुत्थान चाहते थे। उनकी कविता में हिंदू-मुस्लिम एकता से अलगाववाद की ओर बदलाव आया। वे कांग्रेस की आलोचना करते थे, जिसे वे हिंदू-प्रधान मानते थे। भारतीय दृष्टिकोण से इकबाल भारत-विरोधी थे, जिन्होंने विभाजन में योगदान दिया। उनके विचारों ने भारत की एकता को चुनौती दी और अलगाव को बढ़ावा दिया। इकबाल का दृष्टिकोण सनातन संस्कृति और भारतीय मूल्यों के खिलाफ था।
आधुनिक भारत में इकबाल के विचारों का स्थान
आज इकबाल को पाकिस्तान का वैचारिक पिता माना जाता है, लेकिन भारत में उनके गीत को देशभक्ति बताना एक भ्रांति है। उनके विचारों ने जिहाद और अलगाववाद को बढ़ावा दिया। भारत की आजादी का गीत राम मंदिर जैसे प्रतीकों से जुड़ा होना चाहिए। सारे जहाँ से अच्छा को पैन-इस्लामिज्म का प्रचार मानना एक भूल है। इकबाल के विचारों में उम्मा पहले है, राष्ट्र बाद में। उनके इलाहाबाद भाषण और तैराना-ए-मिल्ली ने विभाजन की नींव रखी। प्रेम और एकता के बजाय, यह अलगाव का संदेश है। समाज को इकबाल जैसे विचारों से सावधान रहना चाहिए, और सच्ची देशभक्ति को अपनाना चाहिए।