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आचार्य जोनास मसेटी: सनातन धर्म के वैश्विक दूत की प्रेरणादायक यात्रा

admin by admin
August 6, 2025
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JONASS MASETTI
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आचार्य जोनास मसेटी (Jonas Masetti), जिन्हें विश्वनाथ के नाम से भी जाना जाता है, एक ऐसी शख्सियत हैं जिन्होंने ब्राजील की धरती पर सनातन धर्म की ज्योति जलाकर विश्व भर में भारतीय आध्यात्मिकता की सुगंध फैलाई। एक मैकेनिकल इंजीनियर और स्टॉक मार्केट सलाहकार से सनातन धर्म के प्रचारक बनने तक की उनकी यात्रा किसी चमत्कार से कम नहीं। ब्राजील के पेट्रोपोलिस की पहाड़ियों में स्थापित उनका विश्व विद्या गुरुकुलम आज वेदांत, भगवद् गीता, योग, संस्कृत और रामायण की शिक्षाओं का केंद्र है। भारत सरकार ने उनके इस असाधारण योगदान के लिए 2025 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया। जोनास की कहानी केवल व्यक्तिगत परिवर्तन की नहीं, बल्कि सनातन धर्म की वैश्विक पहुंच और इसके गहन प्रभाव को दर्शाने वाली है।

एक सामान्य शुरुआत से आध्यात्मिक खोज तक

जोनास मसेटी का जन्म ब्राजील के रियो डी जनेरियो में हुआ था। एक मध्यमवर्गीय परिवार में पले-बढ़े जोनास ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की और जल्द ही ब्राजील की नामी कंपनियों में काम शुरू किया। स्टॉक मार्केट में उनकी सलाहकारी भूमिका ने उन्हें धन, सम्मान और सामाजिक प्रतिष्ठा दी। लेकिन इन सबके बीच उनके मन में एक खालीपन था। वे जीवन का गहरा अर्थ तलाश रहे थे, कुछ ऐसा जो भौतिक सफलता से परे हो। उनकी यह खोज उन्हें भारतीय आध्यात्मिकता की ओर ले गई। स्वामी विवेकानंद के विचारों और उनके द्वारा प्रस्तुत वेदांत दर्शन ने जोनास के मन को गहराई से छुआ। विवेकानंद की पुस्तकें पढ़ते हुए उन्हें लगा कि सत्य की खोज के लिए भारत की धरती पर जाना जरूरी है।

2004 में, जोनास ने ब्राजील में ही एक भारतीय गुरु से वेदांत की प्रारंभिक शिक्षा ली। यह उनके लिए एक नया द्वार था, जो उन्हें आध्यात्मिकता की गहराइयों में ले गया। 2006 में, उनकी मुलाकात ग्लोरिया एरियरा से हुई, जिन्होंने उन्हें स्वामी दयानंद सरस्वती से मिलवाया। स्वामी दयानंद, कोयंबटूर के अर्ष विद्या गुरुकुलम के संस्थापक, वेदांत के महान शिक्षक थे। उनके सान्निध्य में जोनास ने 2009 से 2012 तक तीन साल का गहन आवासीय पाठ्यक्रम किया। इस दौरान उन्होंने वेदांत, भगवद् गीता, उपनिषद, संस्कृत और भारतीय दर्शन का गहन अध्ययन किया। भारत में बिताए ये साल उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट साबित हुए। वे न केवल भारतीय संस्कृति में रम गए, बल्कि उन्होंने इसे अपने जीवन का आधार बना लिया।

विश्व विद्या गुरुकुलम: सनातन धर्म का नया केंद्र

2014 में, जोनास ब्राजील लौटे और पेट्रोपोलिस की शांत पहाड़ियों में विश्व विद्या गुरुकुलम की स्थापना की। यह स्थान, जो रियो डी जनेरियो के पास ईसाई आबादी से घिरा हुआ है, आज सनातन धर्म का एक जीवंत केंद्र बन चुका है। गुरुकुलम में नियमित कक्षाएँ, आध्यात्मिक शिविर और रिट्रीट आयोजित होते हैं, जहाँ लोग वेदांत, योग, संस्कृत, गीता और रामायण का अध्ययन करते हैं। जोनास की शिक्षाएँ केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं हैं; वे जीवन को समग्र रूप से देखने का दृष्टिकोण देती हैं। उनके गुरुकुलम में 1,50,000 से अधिक लोग सनातन धर्म की शिक्षाओं से जुड़ चुके हैं। कई लोग, जो पहले ईसाई या अन्य धर्मों का पालन करते थे, जोनास की शिक्षाओं से प्रेरित होकर सनातन धर्म की ओर मुड़े हैं।

जोनास की पत्नी मीनाक्षी, बेटी सरस्वती और बेटा मनु भी इस आध्यात्मिक यात्रा का हिस्सा हैं। उनका परिवार सनातन संस्कृति के मूल्यों को जीता है, जो उनके गुरुकुलम की शिक्षाओं को और प्रामाणिक बनाता है। गुरुकुलम में आयोजित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम, जैसे रामायण और महाभारत पर आधारित नाटक, लोगों को भारतीय संस्कृति से जोड़ने का एक अनूठा माध्यम बन चुके हैं। ये नाटक न केवल मनोरंजक हैं, बल्कि गहन आध्यात्मिक संदेश भी देते हैं।

सनातन धर्म का वैश्विक प्रचार

जोनास ने सनातन धर्म को फैलाने के लिए कई नवीन तरीके अपनाए। उन्होंने भगवद् गीता का पुर्तगाली में अनुवाद किया, जिसमें उन्होंने सांस्कृतिक अंतर को पाटने के लिए व्याख्यात्मक टिप्पणियाँ जोड़ीं। उदाहरण के लिए, उन्होंने कामधेनु गाय को पश्चिमी पाठकों के लिए अलादीन के जादुई चिराग से जोड़ा, ताकि वे भारतीय अवधारणाओं को आसानी से समझ सकें। इसके अलावा, वे रामायण और महाभारत की कहानियों को नाटकों और झांकियों के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं। ये प्रस्तुतियाँ न केवल ब्राजील के लोगों को आकर्षित करती हैं, बल्कि उन्हें भारतीय संस्कृति के मूल्यों से जोड़ती हैं।

जोनास ने डिजिटल माध्यम का भी भरपूर उपयोग किया। उनके यूट्यूब चैनल पर एक मिलियन से अधिक फॉलोअर्स हैं, जो उनकी शिक्षाओं को विश्व भर में ले जाते हैं। उनके ऑनलाइन पाठ्यक्रमों ने हजारों लोगों को वेदांत और योग से जोड़ा है। वे नियमित रूप से वेबिनार और ऑनलाइन सत्र आयोजित करते हैं, जिनमें लोग विश्व के किसी भी कोने से भाग ले सकते हैं। उनकी यह पहल विशेष रूप से उन लोगों के लिए वरदान साबित हुई है जो भारत की आध्यात्मिक शिक्षाओं तक सीधे नहीं पहुँच सकते।

सामाजिक समावेशिता और शिक्षा के लिए प्रयास

जोनास का दृष्टिकोण केवल आध्यात्मिक शिक्षा तक सीमित नहीं है। उन्होंने सामाजिक समावेशिता पर भी विशेष ध्यान दिया। उनके गुरुकुलम में वंचित समुदायों के लिए छात्रवृत्ति योजनाएँ चलती हैं, ताकि आर्थिक रूप से कमजोर लोग भी वेदांत और योग की शिक्षा प्राप्त कर सकें। उनके सांस्कृतिक शिविरों में सभी पृष्ठभूमि के लोग शामिल होते हैं, जो सनातन धर्म की समावेशी प्रकृति को दर्शाता है। जोनास का मानना है कि सनातन धर्म का ज्ञान सभी के लिए सुलभ होना चाहिए, चाहे उनकी सामाजिक या आर्थिक स्थिति कुछ भी हो।

उनके गुरुकुलम में संस्कृत की कक्षाएँ विशेष रूप से लोकप्रिय हैं। जोनास स्वयं संस्कृत में पारंगत हैं और इसे सरल तरीके से सिखाते हैं। उनके छात्रों में बच्चे, युवा और वयस्क सभी शामिल हैं। संस्कृत सीखने से न केवल लोग भारतीय ग्रंथों को मूल रूप में समझ पाते हैं, बल्कि यह उनकी बौद्धिक और आध्यात्मिक समझ को भी गहरा करता है।

भारत के प्रति प्रेम और बार-बार की यात्राएँ

जोनास का भारत के प्रति प्रेम उनकी हर बात में झलकता है। वे नियमित रूप से भारत आते हैं, विशेष रूप से ऋषिकेश और कोयंबटूर जैसे आध्यात्मिक केंद्रों में। इन यात्राओं के दौरान वे न केवल अपनी आध्यात्मिक साधना को गहरा करते हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति के नए पहलुओं को भी सीखते हैं। भारत की पवित्र नदियाँ, मंदिर और आश्रम उनके लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। वे कहते हैं कि भारत की धरती में एक ऐसी ऊर्जा है जो हर बार उन्हें और अधिक सिखाती है।

उनकी भारत यात्राओं ने उनके गुरुकुलम को और समृद्ध किया है। वे भारतीय गुरुओं, संतों और विद्वानों से मिलकर नया ज्ञान अर्जित करते हैं, जिसे वे ब्राजील में अपने छात्रों तक ले जाते हैं। उनकी यह यात्रा एक सेतु की तरह है, जो भारत और ब्राजील की संस्कृतियों को जोड़ता है।

सनातन धर्म की शक्ति का प्रतीक

जोनास मसेटी की कहानी सनातन धर्म की शक्ति और उसकी वैश्विक अपील का प्रतीक है। एक ऐसे व्यक्ति, जो ब्राजील जैसे देश में पला-बढ़ा, जहाँ भारतीय संस्कृति अपरिचित थी, ने न केवल इसे अपनाया, बल्कि इसे लाखों लोगों तक पहुँचाया। उनकी यात्रा यह दर्शाती है कि सनातन धर्म की शिक्षाएँ समय और स्थान की सीमाओं से परे हैं। वेदांत का ज्ञान, जो आत्म-खोज और सार्वभौमिक एकता पर आधारित है, हर उस व्यक्ति को छू सकता है जो सत्य की तलाश में है।

 

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