भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म का इतिहास अनेक चुनौतियों और परिवर्तनों का साक्षी रहा है। मुगल शासन और ब्रिटिश उपनिवेशवाद के दौर में सनातन धर्म को कई तरह से कमजोर करने की कोशिशें हुईं। मुगलों ने प्रत्यक्ष हमले किए, तो अंग्रेजों ने आधुनिकता की आड़ में मानसिक गुलामी थोपने की रणनीति अपनाई। इस कठिन समय में सनातन धर्म की रक्षा के लिए भक्ति आंदोलन और कला का उदय हुआ। इस कला क्रांति के सबसे बड़े नायक थे राजा रवि वर्मा (Raja Ravi Varma) , जिन्होंने अपनी चित्रकला के माध्यम से सनातन धर्म को न केवल जीवित रखा, बल्कि उसे हर घर तक पहुँचाया। यह लेख राजा रवि वर्मा के योगदान, उनकी कला के प्रभाव, और सनातन धर्म को वामपंथी विचारधारा से बचाने में उनकी भूमिका पर प्रकाश डालता है।
सनातन धर्म पर संकट और भक्ति की लहर
ब्रिटिश काल में सनातन धर्म को कमजोर करने के लिए कई तरह के प्रचार किए गए। अंग्रेजों ने भारतीय संस्कृति को हीन और पिछड़ा बताने की कोशिश की, ताकि भारतीयों का अपनी जड़ों से विश्वास उठ जाए। वामपंथी विचारधारा, जो उस समय भी विभिन्न रूपों में मौजूद थी, ने सनातन धर्म के सिद्धांतों को चुनौती दी और दलित समुदाय को उनके धर्म से अलग करने का प्रयास किया। यह एक ऐसी रणनीति थी, जो मन को कमजोर करती थी और भारतीय समाज की एकता को तोड़ने का काम करती थी।
इस संकट के समय में सनातन धर्म ने समय की माँग के अनुसार खुद को ढाला। भक्ति आंदोलन ने कविता, नृत्य, और कीर्तन के माध्यम से लोगों को उनके धर्म से जोड़े रखा। कथक जैसे नृत्य, जिसका अर्थ है ‘कथा कहने वाला’, ने सनातन धर्म की कहानियों को जीवित रखा। इसी तरह, चित्रकला ने भी सनातन धर्म को नया जीवन दिया, और इस क्षेत्र में राजा रवि वर्मा का योगदान अतुलनीय है।
राजा रवि वर्मा: एक सनातनी कलाकार का उदय
केरल के किलिमानूर में 29 अप्रैल 1848 को जन्मे राजा रवि वर्मा एक ऐसे कलाकार थे, जिन्होंने अपनी कला के माध्यम से सनातन धर्म को न केवल संरक्षित किया, बल्कि उसे हर घर तक पहुँचाया। उनके परिवार का सांस्कृतिक और धार्मिक वातावरण उनके जीवन का आधार बना। उनके चाचा, राजा राजा वर्मा, स्वयं कला के प्रेमी थे और उन्होंने राजा रवि वर्मा को प्रोत्साहित किया। उनके चाचा ने ही उनकी मुलाकात त्रावणकोर के महाराजा अयिल्यम तिरुनल से करवाई, जिनके महल में राजा रवि वर्मा ने यूरोपीय चित्रकला, विशेष रूप से इतालवी शैली, का अध्ययन किया।
यूरोपीय कला से प्रेरित होकर राजा रवि वर्मा ने ठाना कि वे अपनी कला के माध्यम से भारतीय समाज में बदलाव लाएँगे। उनकी पहली उल्लेखनीय पेंटिंग थी The Kizhakkepat Krishna Menon Family, जिसने उनकी प्रतिभा को सामने लाया। इस पेंटिंग के लिए उन्हें ‘वीरशृंखला’ की उपाधि मिली। लेकिन राजा रवि वर्मा का असली मकसद केवल प्रसिद्धि नहीं था। वे भारतीय समाज में व्याप्त भेदभाव को समझते थे और चाहते थे कि उनकी कला सनातन धर्म को पुनर्जनन दे।
कला के माध्यम से सनातन धर्म का पुनर्जनन
राजा रवि वर्मा ने अपनी चित्रकला में सनातन धर्म के पात्रों और कहानियों को जीवंत किया। उनकी पेंटिंग्स में माँ लक्ष्मी, सरस्वती, श्रीकृष्ण, राम, सीता, और अन्य पौराणिक चरित्रों को इस तरह चित्रित किया गया कि वे जीवंत प्रतीत होते थे। उनकी बनाई माँ लक्ष्मी की तस्वीर देखकर ऐसा लगता है मानो देवी स्वयं सामने खड़ी हों। शकुंतला का काँटा निकालते हुए, दमयंती और हंस, श्रीकृष्ण द्वारा माता-पिता को कंस की कैद से मुक्त कराने का दृश्य, और रावण द्वारा सीता हरण जैसे चित्रों में उनकी कला का जादू साफ दिखता है।
उनके चित्रों की खासियत थी कि वे भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म के सार को पकड़ते थे। पृष्ठभूमि में पक्षी, पेड़, और प्राकृतिक दृश्यों का समावेश उनकी पेंटिंग्स को और भी जीवंत बनाता था। ये चित्र केवल कला नहीं थे, बल्कि सनातन धर्म के प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक थे। राजा रवि वर्मा ने रामायण और महाभारत के दृश्यों को इस तरह चित्रित किया कि वे आम लोगों के लिए सुलभ हो गए। उनकी पेंटिंग्स मंदिरों से निकलकर घर-घर पहुँचीं, जिससे हर व्यक्ति अपने देवी-देवताओं से जुड़ सका।
दलितों को धर्म से जोड़ने की क्रांति
उस समय समाज में भेदभाव और जातिगत असमानता एक बड़ी समस्या थी। वामपंथी विचारधारा और औपनिवेशिक प्रचार ने दलित समुदाय को सनातन धर्म से दूर करने की कोशिश की। यह प्रचार किया गया कि सनातन धर्म दलितों के लिए नहीं है। लेकिन राजा रवि वर्मा ने अपनी कला के माध्यम से इस भ्रांति को तोड़ा। उनकी पेंटिंग्स ने सनातन धर्म के देवी-देवताओं को हर घर तक पहुँचाया, चाहे वह किसी भी जाति या वर्ग का हो। उनकी बनाई तस्वीरें पूजा-घरों में स्थापित हुईं, जिससे दलित और अन्य समुदाय भी अपने धर्म के साथ जुड़ सके।
राजा रवि वर्मा ने केवल चित्रकारी तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने संस्कृत महाकाव्य मानसयात्रा को मलयालम में अनुवाद किया और हिंदू पुराणों को आम लोगों तक पहुँचाने का प्रयास किया। उनकी कला और लेखन ने सनातन धर्म को एक नया आयाम दिया, जिसने समाज के हर वर्ग को एकजुट किया।
वामपंथ और औपनिवेशिक प्रचार का जवाब
ब्रिटिश शासन और वामपंथी विचारधारा ने सनातन धर्म को अंधविश्वास और पिछड़ेपन का प्रतीक बताने की कोशिश की। लेकिन राजा रवि वर्मा ने अपनी कला के माध्यम से इस प्रचार का जवाब दिया। उनकी पेंटिंग्स ने न केवल सनातन धर्म की सुंदरता को उजागर किया, बल्कि यह भी दिखाया कि यह धर्म समय के साथ बदलने और सभी को समेटने में सक्षम है। उनकी कला ने लोगों के मन में सनातन धर्म के प्रति गर्व और श्रद्धा जागृत की।
उनके चित्रों ने रामायण और महाभारत के पात्रों को जीवंत किया। भगवान राम का समुद्र देवता को ललकारना, श्रीकृष्ण और दुर्योधन की सभा, या जटायु और रावण का युद्ध जैसे दृश्यों ने लोगों को उनके धर्म की गहराई से जोड़ा। ये चित्र केवल कला नहीं थे, बल्कि एक सांस्कृतिक क्रांति का हिस्सा थे, जिसने सनातन धर्म को वामपंथी और औपनिवेशिक हमलों से बचाया।
सनातन धर्म की शक्ति और लचीलापन
सनातन धर्म की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह समय के साथ खुद को ढाल लेता है, लेकिन अपनी मर्यादा और मूल्यों को बनाए रखता है। राजा रवि वर्मा इसका जीवंत उदाहरण हैं। उन्होंने अपनी कला के माध्यम से सनातन धर्म को न केवल जीवित रखा, बल्कि उसे हर घर तक पहुँचाया। उनकी पेंटिंग्स ने मंदिरों में स्थापित देवी-देवताओं को आम लोगों के पूजा-घरों तक लाया, जिससे धर्म और भक्ति का एक नया स्वरूप सामने आया।
उनका योगदान यह दर्शाता है कि सनातन धर्म केवल मंदिरों तक सीमित नहीं है। यह हर व्यक्ति के जीवन का हिस्सा बन सकता है, चाहे वह किसी भी जाति, वर्ग, या पृष्ठभूमि से हो। उनकी कला ने दलितों और अन्य वंचित समुदायों को उनके धर्म से जोड़ा, जिससे सनातन धर्म की एकता और समावेशिता का संदेश और मजबूत हुआ।
कला का सामाजिक प्रभाव
राजा रवि वर्मा की कला ने समाज में गहरे बदलाव लाए। उनकी पेंटिंग्स ने लोगों को उनके धर्म और संस्कृति के प्रति गर्व महसूस कराया। उन्होंने दिखाया कि कला केवल सौंदर्य का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक और आध्यात्मिक परिवर्तन का माध्यम भी हो सकती है। उनकी बनाई तस्वीरें आज भी पूजा-घरों में देखी जाती हैं, जो सनातन धर्म की अमरता का प्रतीक हैं। उनके चित्रों में स्त्री पात्रों, जैसे शकुंतला, दमयंती, और सीता, को जिस सम्मान और सुंदरता के साथ दर्शाया गया, वह उस समय की सामाजिक सोच को बदलने वाला था। उनकी कला ने यह साबित किया कि सनातन धर्म में स्त्री शक्ति का विशेष स्थान है, और यह धर्म सभी के लिए समान रूप से सुलभ है।
सनातन धर्म का भविष्य
राजा रवि वर्मा का जीवन और उनकी कला हमें यह सिखाती है कि सनातन धर्म की रक्षा के लिए हमें अपनी जड़ों से जुड़े रहना होगा। उनकी कला ने उस समय के वामपंथी और औपनिवेशिक प्रचार को चुनौती दी और सनातन धर्म को एक नया जीवन दिया। आज भी उनकी पेंटिंग्स हमें प्रेरित करती हैं कि हम अपने धर्म और संस्कृति को समझें और उसका सम्मान करें।सनातन धर्म की शक्ति इसकी लचीलता और समावेशिता में है। यह हर युग में, हर परिस्थिति में, अपने अनुयायियों को एकजुट करता है। राजा रवि वर्मा जैसे महान व्यक्तित्व हमें यह सिखाते हैं कि कला, भक्ति, और धर्म के माध्यम से हम अपने इतिहास और संस्कृति को जीवित रख सकते हैं। उनकी कला आज भी हमें यह याद दिलाती है कि सनातन धर्म केवल एक धर्म नहीं, बल्कि एक जीवनशैली है, जो हर व्यक्ति को अपने भीतर की दिव्यता से जोड़ती है।