जब भारत पर विदेशी आक्रांताओं का दौर था, मंदिरों को नष्ट किया जा रहा था, संस्कृति संकट में थी—तब एक महिला योद्धा और समाज सुधारक ने धर्म और संस्कृति की मशाल को जलाए रखा। उनका नाम था अहिल्याबाई होल्कर (Ahilyabai Holkar), जिन्हें आज “Queen of Temples” के नाम से सम्मानित किया जाता है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
31 मई 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के छौंड़ी गांव में जन्मीं अहिल्याबाई के पिता मनकोजी शिंदे एक किसान थे। उस काल में जब स्त्रियों की शिक्षा को महत्व नहीं दिया जाता था, अहिल्याबाई ने वेद, पुराण और शास्त्रों का अध्ययन किया। यह उनके भविष्य के अद्वितीय नेतृत्व की नींव बनी।
मात्र 8 वर्ष की आयु में विवाह
अहिल्या का विवाह केवल 8 वर्ष की उम्र में मराठा सरदार मल्हारराव होल्कर के पुत्र खंडेराव होल्कर से हुआ। विवाह के बाद उन्होंने पूरे होल्कर परिवार का सम्मान जीता। उनके दो संतानें हुईं—मालेराव और मुक्ताबाई। दुर्भाग्यवश, खंडेराव की मृत्यु 1754 में युद्ध में हो गई।
सती प्रथा को ठुकराया
पति की मृत्यु के बाद अहिल्याबाई को सती बनाने का प्रयास किया गया, लेकिन मल्हारराव होल्कर ने इसका विरोध किया। अहिल्या ने सती होने से इनकार कर अपना जीवन समाज सेवा और राज्य संचालन के लिए समर्पित कर दिया।
शासन में उत्कीर्ण एक युग
1766 में मल्हारराव की मृत्यु और 1767 में पुत्र मालेराव के निधन के बाद, अहिल्याबाई ने 11 दिसंबर 1767 को मालवा साम्राज्य की बागडोर संभाली। वे केवल एक प्रशासक नहीं, बल्कि एक कुशल सेनापति थीं, जो हाथी पर चढ़कर युद्धभूमि में उतरती थीं।
उन्होंने:
राज्य को समृद्ध और सुरक्षित बनाया
प्रजा को न्यायपूर्ण शासन दिया
धार्मिक पुनरुत्थान का युग शुरू किया
मंदिरों की पुनर्स्थापना: अहिल्याबाई का सर्वोच्च योगदान
मुगलों द्वारा ध्वस्त किए गए सैकड़ों मंदिरों का पुनर्निर्माण अहिल्याबाई ने कराया। प्रमुख मंदिर जिनका पुनर्निर्माण उन्होंने कराया:
काशी विश्वनाथ मंदिर (वाराणसी)
सोमनाथ मंदिर (गुजरात)
अन्नपूर्णा मंदिर, विष्णुपद मंदिर (गया)
रामेश्वरम, द्वारका, अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार सहित अनेकों तीर्थ स्थल
इनके अलावा उन्होंने धर्मशालाएं, घाट, बावड़ियां, और कुएं भी बनवाए।
सामाजिक सुधार: विधवाओं के अधिकार
अहिल्याबाई एक धर्म संरक्षिका ही नहीं, बल्कि एक सामाजिक सुधारक भी थीं। उन्होंने:
विधवाओं को संपत्ति का अधिकार दिलाया
महिलाओं को शिक्षा और सेवा कार्यों में भाग लेने के लिए प्रेरित किया
सती प्रथा को हतोत्साहित किया
उनके बनाए तीर्थ और स्थल आज भी जीवित हैं:
गंगा घाट, वाराणसी
नर्मदा घाट, महेश्वर
उत्तरकाशी धर्मशाला, रामेश्वर पंचकोशी, कपिलधारा धर्मशाला
मृत्यु और विरासत
13 अगस्त 1795 को 70 वर्ष की आयु में अहिल्याबाई का निधन हुआ। उनकी मृत्यु के बाद उन्हें “देवी” के रूप में पूजा जाने लगा। आज भी उनके बनाए मंदिर, घाट और धर्मशालाएं उनकी धार्मिक चेतना, सेवा और निष्ठा की प्रतीक हैं।
अहिल्याबाई होल्कर का जीवन इस बात का प्रमाण है कि धर्म की रक्षा केवल तलवार से नहीं, बल्कि सेवा, निर्माण और सामाजिक सुधार से भी संभव है। उन्होंने यह सिद्ध किया कि एक विधवा महिला भी समाज, संस्कृति और राज्य का कायाकल्प कर सकती है।