कहा जाता है कि जब माता सती को भगवान शिव ने उनके पिता के घर यज्ञ में जाने से रोका तो माता सती ने क्रोध स्वरुप अपनी दस महाविद्याओं का स्वरुप प्रगट किया। इन्हीं दस महाविद्याओं की पूजा नवरात्रि के पावन अवसर पर सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए की जाती है। इन दस महाविद्याओं को इच्छा पूरी करने वाली माता कहा जाता है।
माँ काली हैं प्रथम महाविद्या।
दस महाविद्याओ में जो सर्वप्रथम महाशक्ति हैं वो हैं माँ काली या महाकाली। वही आद्या शक्ति की प्रथम स्वरुप है। महाकाली महाकाल के उपर विराजती हैं। जब संसार का लय हो जाता है और कुछ भी नहीं बचता तब महाकाली ही शक्ति बन कर संसार के निर्माण की शुरुआत करती हैं। और प्रलय के बाद फिर से समस्त सृष्टी को अपने में समा लेती हैं।
मां तारा हैं दूसरी महाविद्या।
माँ तारा से ही आकाश, जल, वायु, पृथ्वी और अग्नि उत्पन्न होते हैं। एक मान्यता के अनुसार जब मधु-कैटभ का वध हो गया तो इन दोनों दैत्यों के शरीर से ही पृथ्वी का निर्माण किया गया तब इन दैत्यों के शरीर के पापों की वजह से भूमि पर जीवन मुश्किल दिख रहा था। तब देवी सती ने माँ तारा के रुप में महादेव शिव के साथ अवतार लिया। भगवान शिव दक्षिणेश्वर भगवान के रुप में अवतार लेकर पृथ्वी पर जीवन लाने का कार्य किया। तथा सबसे पहले भगवान सूर्य को उत्पन्न किया। भगवान सूर्य को माँ तारा ने आदेश दिया कि वो पृथ्वी पर जीवन लाने के लिए हमेशा प्रकाशित हों। इस प्रकार तारा और महादेव की शक्ति से पृथ्वी पर जीवन संभव हुआ।
मां त्रिपुरसुन्दरी हैं तीसरी महाविद्या।
इन दस महाविद्याओं में तीसरी महाविद्या के रुप में माँ त्रिपुर सुंदरी की अराधना की जाती है. त्रिपुर सुंदरी को माँ ललिता, माँ कामाक्षी और माँ राजराजेश्वरी भी कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि माँ त्रिपुर सुंदरी सदाशिव भगवान की नाभि से प्रकट हुई हैं। माँ त्रिपुर सुंदरी के सिंहासन के नीचे पांच देवताओं ब्रह्मा, विष्णु, शिव, सरस्वती और लक्ष्मी को दिखाया गया है जो अपने मस्तक पर माँ ललिता के सिंहासन को धारण करते हैं।
मां भुवनेश्वरी है चौथी महाविद्या।
माँ भुवनेश्वरी को आदि प्रकृति भी माना जाता है, जिनसे माया की रचना होती है। इसी माया से माँ भुवनेश्वरी त्र्यंम्बक भैरव के साथ मिल कर ब्रह्मा , विष्णु और शिव को उत्पन्न करती हैं। माँ भुवनेश्वरी ही सभी लोकों की स्वामिनी हैं। माँ भुवनेश्वरी से ही सभी जगत के जीवों की उत्पत्ति होती है, इसलिए उन्हें देवताओं की माता अदिति का स्वरुप भी माना जाता है। माँ भुवनेश्वरी के शरीर के अंदर सभी ब्रह्मांड विराजते हैं,
.माँ भुवनेश्वरी की अराधना से मनुष्य हर एक प्रकार की माया से मुक्त हो कर मोक्ष प्राप्त कर सकता है क्योंकि उनकी ही माया से हम संसार मे भटकते रहते हैं और उनकी ही कृपा से हम संसार के जन्म मरण के चक्र से मुक्त हो सकते हैं।
मां त्रिपुर सुंदरी हैं पांचवी महाविद्या।
माँ त्रिपुर भैरवी को कुंडलिनि शक्ति की अधिष्ठात्री देवी कहा गया है। मता त्रिपुर सुंदरी हमें इस संसार रुपी माया से ज्ञान की तरफ ले जाती हैं। माँ त्रिपुर भैरवी को संहारक शक्ति माना गया है। माँ काली ब्रह्माण्ड की सर्वोच्च संहारक शक्ति हैं। माँ त्रिपुर सुंदरी प्रलय की साक्षी रहने वाली महाशक्ति हैं। माँ भैरवी हमारे जीवन की वो संहारक शक्ति हैं, जो प्रतिदिन कार्यरत रहती हैं। माँ त्रिपुर भैरवी हमारे शरीर की कोशिकाओं का धीरे धीरे संहार या नाश करती हैं, ताकि नई कोशिकाओं का निर्माण हो सके। वो हमारी सृजन की शक्तियों को कम करती जाती हैं। दरअसल हमें बूढ़ा बनाने वाली देवी त्रिपुर भैरवी ही हैं।
मां छिन्नमस्ता हैं छठी महाविद्या।
माता छिन्नमस्ता को प्रलय की देवी भी कहा जाता है। ऐसी कथा है माता पार्वती अपनी दोनों सखियों जया और विजया के साथ स्नान कर रही थीं तभी जया और विजया को भूख लगी तब माता पार्वती ने अपने ही रक्त से इन दोनों की भूख मिटाई और तीसरी धारा का खुद पान कर अपनी भूख भी मिटाई। एक मत के अनुसार मां छिन्नमस्ता का सीधा संबंध प्रलय से है। जब सृष्टि का प्रलय होता है तो आद्या शक्ति खुद भी इसी प्रकार अपने सिर को काट कर प्रलय कार्य को पूरा करती हैं।
मां धूमावती हैं सातवीं महाविद्या।
आद्या शक्ति से उत्पन्न दस महाविद्याओं में सातवीं महाशक्ति हैं माँ धूमावती। माँ धूमावती कुरुपता, वैराग्य, अशुभता, कमजोरी, बुढ़ापा और दरिद्रता के लिए जानी जाती हैं। माता धूमावती को मृत्यु की देवी की सखी भी कहा जाता है. इन सभी अशुभ संकेतों के बावजूद भी माता धूमावती वरदान देने की स्थिति में दिखाई गई हैं। उन्हें संतान देने वाली देवी के रुप में भी पूजा जाता है।
मां बगलामुखी आठवीं महाविद्या हैं।
देवी बगलामुखी दसमहाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं ।यह कष्ट दूर करने वाली देवी हैं। समस्त ब्रह्मांड देवी बग्लामुखी के शक्ति स्वरूप में बसा हुआ है। माता बगलामुखी शत्रुनाश करती हैं, किसी भी युदध में विजय के लिए इनकी पूजा की जाती है। इनकी पूजा से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है।
माता मातंगी हैं नौवीं महाविद्या।
आद्याशक्ति की दस महाविद्याओं में से नौवीं महाविद्या देवी मातंगी हैं। देवी मातंगी को तांत्रिक सरस्वती के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि मातंगी माता का प्राकट्य गिरे हुए भोजन के तुकड़ों से हुआ है। दरअसल माता पार्वती के गिरे हुए भोजन के भागों से एक सांवले रंग वाली स्त्री ने जन्म लिया जो मातंगी देवी के नाम से प्रसिद्ध हुई। यह भी कहा जाता है कि मुनि मतंग की पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नाम मातंगी पड़ा। पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि मातंगी देवी की सबसे पहली पूजा भगवान विष्णु ने की थी।
कमला माता हैं दसवीं महाविद्या।
कमला माता आद्याशक्ति की दसवीं और आखिरी महाविद्या हैं। देवी कमला के बारे में कहा जाता है कि ये धन तथा भाग्य की देवी हैं। धन की इच्छा से इनकी पूजा की जाती है। और इच्छा पूरी करने वाली माता कमलाकी आराधना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।