आपने महाभारत के बारे में खूब पढ़ा होगा, सुना होगा और देखा होगा। हजारों साल बाद भी ये युद्ध। युद्ध और उसकी वीभिषका का प्रतीक बना हुआ है। आज हम आपको महाभारत का आंखों देखा सच बताएंगे। जिनसे उन लोगों की आत्मा भी एक बार रो पड़ेगी जो हर समय युद्ध की बात करते हैं। और युद्ध से ही हर समस्या का समाधान करना चाहते हैं। ये विभिषका कितनी बड़ी थी इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है स्वयं भगवान कृष्ण को श्राप का भागी बनना पड़ा जिससे उनके वंश का सर्वनाश हो गया। उन दारुण दृश्यों का अनुभव आपको इस लेख में देखने को मिलेगा।
महाभारत के बाद रोती-बिलखती स्त्रियां
महाभारत के युद्ध में जीत के बाद जब पांचों पाण्डव और कृष्ण महाराज धृतराष्ट्र और रानी गांधारी से मिलते हैं तो उनसे माफी मांगते हैं। माता गांधरी के क्रोध से किसी प्रकार अपनी जान बचाते हैं। उसके बाद सभी अपने बन्धु बान्धवों के शवों को देखने और उनका अंत्येष्टि कर्म करने के लिये जाते है। तब महाभारत के बाद रोती बिलखती स्त्रियों की स्थिति का वर्णन महाभारत के स्त्रीपर्व के 16वें अध्याय मिलता है। उस बेहद मार्मिक स्थिति का वर्णन करते हुए वेदव्यास जी कहते हैं-
समासाद्य कुरुक्षेत्रं ता: स्त्रियो निहतेश्वरा:।
अपश्यन्त हतांस्तत्र पुत्रान् भ्रातृन्पितृन् पतीन्। ।
क्रव्यादैर्भक्ष्यमाणान् वै गोमायुबलवायसै :।
भूतै: पिशाचै रक्षोभिर्विविधैश्च निशाचरै :।।
उस समय कुरुक्षेत्र में उन अनाथ स्त्रियों ने वहां मारे गये अपने पुत्र, पिता, पति के शरीरों को देखा, जिन्हे मांसभक्षी जीव जन्तु जैसे गीदड, कौए और नाना प्रकार के निशाचर जैसे भूत, पिशाच, राक्षस नोंच नोंचकर खा रहे थे।
गांधारी का दिल दहला देने वाला विलाप
महाभारत युद्ध की सामाप्ति के बाद गाधांरी अपने पुत्रों के शवो को देखकर विलाप करती हैं और कटे वृक्ष के समान जमीन पर गिर पड़ती हैं। मूर्छा से जागने पर वो फिर पुत्र-पुत्र कह कर विलाप करने लगीं। मृत पड़े दुर्योधन की छाती पीट पीटकर रोने लगती हैं। गांधारी का दिल दहला देने वाला विलाप सुनकर भगवान श्रीकृष्ण उनके पास आखर खड़े हो गए। गांधारी पास में ही खड़े भगवान श्रीकृष्ण से कहने लगीं कि जब ये प्रलयकारी युद्ध शुरु हुआ तो मेरा वीर पुत्र मुझसे आशीर्वाद मांगने आया था कि मां मुझे इस युद्ध में विजय होने का आशीर्वाद प्रदान करें। फिर भी मैंने चाहते हुए भी अपने पुत्र को ये कहकर मना कर दिया था की जहां धर्म है। वहीं विजय है। इस प्रकार वो वीर माता ये जानते हुए भी कि मेरा पुत्र मारा जायेगा उन्होंनें धर्म का साथ दिया।
शव देख विक्षिप्त हो गईं स्त्रियां
महाभारत के बाद गांधारी श्रीकृष्ण से कहती है कि ये अपने परिश्रम से पूरी पृथ्वी को जीत चुके मेरे पुत्र को भीमसेन ने अपनी गदा से किस प्रकार मार डाला है। द्यूत क्रीड़ा के समय द्रोपदी ने जो क्लेश पाया उसी से प्रेरित होकर भीमसेन ने मेरे इस पुत्र को मारकर इसका रक्त पान किया। ये मेरी जो पुत्रों की बाल वधुएँ हैं। जिनके पुत्र भी मारे जा चुकें है। औऱ पति भी, तथा शव देख विक्षिप्त हो गईं स्त्रियां दुख से आतुर हो पगली स्त्रियों के समान झूम रही हैं। इधर-उधर भागती हैं और बड़ी कठिनाई से गीधों, गीदड़ों औऱ कौऔं को लाशों से दूर भगा रही हैं। ये पीड़ित स्त्रियां टूटे हुए रथों, मारे गये हाथी और घोड़ों की लाशों का सहारा लेकर खड़ी हैं। एक ओर स्त्रियों के रोने की आवाज तो दूसरी ओर हिंसक जन्तुओं की गर्जना हो रही है। यह दृश्य के देखकर पत्थर दिल भी पिघल जाएगा
कर्ण का शव देख विचलित हुईं गांधारी
गांधारी श्रीकृष्ण से कहती है कि ये जो महान धनुर्धर युद्ध स्थल पर सो रहा है। महारथी कुन्तीकुमार कर्ण है। बहुत से अतिरथी वीरों का संहार करने के बाद खून से लथपथ होकर पृथ्वी पर निस्तेज होकर पड़ा है। कर्ण का शव देख विचलित हुईं गांधारी कहती हैं कि महान धनुर्धर अर्जुन के भय से मेरे महारथी पुत्र जिसे आगे करके युद्ध लड़ा करते थे। जिसके कारण धर्मराज युधिष्ठिर को तेरह वर्षों तक नींद नहीं आयी, जो युद्धस्थल में इंद्र के लिये भी अजेय था। वही वीर कर्ण आँधी से टूटकर गिरे वृक्ष के समान धराशायी हो गया है।
भगवान कृष्ण को मिला सर्वनाश का श्राप
युद्ध स्थल में स्त्रियों के सामने उनके प्रिय जानों के कटे-फटे शरीर पड़े थे। उन सुन्दर शरीरों को गीध, कौवे, सियार नोच नोच कर खा रहे थे जिससे उनको पहचानना मुश्किल हो गया। स्त्रीयों का विलाप ऐसा था जो मृत्यु के देवता यमराज को भी भयभीत कर सकता था। अपने परिवार जनों को इस हाल में देखकर गांधारी क्रोध से व्यात हो जाती हैं। और इस युद्ध में पाण्डवों को जीत दिलाने वाले लीलाधर श्रीकृष्ण को शाप देती हैं कि। जिस प्रकार आपने हमारे परिवार की उपेक्षा की है। ठीक उसी तरह आपके भाई-बन्धुओं का भी नाश होगा। आज से 36 वर्ष हो जाने पर आपके परिवार के लोग आपस में ही लड़कर मर जायेगें। आप अनाथ के भांति वन में मृत्यु को प्राप्त करेंगे। भगवान कृष्ण को मिला सर्वनाश का श्राप और भगवान ने गांधारी के इस शाप को हंस कर स्वीकार कर लिया।