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लंका पर भगवान राम की दूसरी चढ़ाई का सच
हिंदू धर्म में महान ग्रंथ रामायण की कथा के अनुसार जब रावण ने माँ सीता का अपहरण कर लिया था तो श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई कर रावण का वध किया था और सीता जी को रावण की कैद से छुड़ाया था।
लेकिन कुछ ग्रंथों के अनुसार श्रीराम को इसके बाद भी एक बार और लंका पर चढ़ाई करनी पड़ी थी, श्रीराम ने लंका को दो बार जीता लेकिन इस बार माँ सीता के लिए नहीं बल्कि अपने भक्त विभीषण के राज्य की रक्षा के लिए श्रीराम ने लंका को दूसरी बार जीता था।
श्रीराम ने विभीषण को लंका का राजा बनाया था
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि भगवान राम ने सभी राक्षसों को मारने की प्रतिज्ञा ली थी और सभी पापी राक्षसों का संहार भी कर दिया था श्रीराम ने विभीषण को लंका का राजा बनाया। लेकिन राम कहानी इसके बाद ही खत्म नहीं हो जाती है। जब विभीषण लंका के राजा बनते हैं तो कुछ दिनों के बाद ही कुंभकर्ण का पौत्र पौण्ड्रक लंका पर हमला कर देता है औऱ विभीषण को पराजित कर उन्हें लंका से निकाल देता है।
आनंद रामायण में श्रीराम की कथा
यह कथा न तो वाल्मीकि रामायण में मिलती है और न ही महाभारत के रामोपाख्यान में । ये कथा मिलती है एक परवर्ती राम कथा में जिसे आनंद रामायण कहा जाता है । इस राम कथा को कब लिखा गया ये कोई नहीं जानता लेकिन वर्तमान में आनंद रामायण को भी बहुत सारे विद्वान महान धार्मिक ग्रंथ की मान्यता देते हैं।
कुंभकर्ण के पुत्र की वजह से की श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई
जब श्रीराम और रावण के बीच महान युद्ध चल रहा था तो उसमें कुंभकर्ण का पुत्र निकुम्भ भी मारा गया था। निकुम्भ की कुछ वर्षों पहले ही शादी हुई थी और युद्ध के वक्त उसकी पत्नी गर्भवती थी। युद्ध के बाद और निकुम्भ के मारे जाने के बाद उसकी पत्नी एक महाबलशाली पुत्र को जन्म देती है । रावण के कुल के इस महाबलशाली संतान का नाम पौण्ड्रक रखा गया। यही कुंभकर्ण का पुत्र बना लंका के नाश का कारण क्योंकि इसके कारण श्रीराम ने लंका पर दोबारा आक्रमण पर जीतकर विभीषण को राजा बना दिया।
बचपन से ही उसकी माँ ने उसे ये बताया था कि कैसे श्रीराम ने रावण सहित उसके पिता का वध किया था और कैसे विभीषण ने श्रीराम की इस कार्य में मदद की थी। बचपन से ही प्रौण्ड्रक श्रीराम और विभीषण से नफरत करने लगा और दिन रात उनसे बदला लेने की योजना बनाने लगा।
कौन था पौण्ड्रूक और क्यों उसका वध किया श्रीराम ने
कुछ वर्षों के बाद जब पौण्ड्रक जवान हुआ तो उसने राम रावण युद्ध के बाद बचे हुए कुछ राक्षसों को लेकर लंका पर हमला कर दिया और विभीषण को पराजित कर उन्हें लंका से भागने के लिए मजबूर कर दिया। विभीषण के पलायन के बाद पौण्ड्रक ने लंका पर कब्जा कर लिया और लंकेश बन कर वहाँ राज करने लगा।
पराजित होकर विभीषण जी एक बार फिर प्रभु श्रीराम की शरण में आए और उन्होंने अपनी रक्षा की गुहार भी लगाई। श्रीराम तो अपने भक्तों को शरण देने के लिए संसार में विख्यात हैं। करुणानिधान श्रीराम से विभीषण की ये हालत देखी नहीं गई और उन्होंने विभीषण की रक्षा का आश्वासन दिया।
प्रभु श्रीराम उस वक्त अयोध्या में राज कर रहे थे। उन्होंने जब विभीषण का ये दुख सुना तो उन्होंने विभीषण की सहायता करने का वचन दिया। आप तो जानते ही हैं कि श्रीराम ने राक्षसों का वध करने के लिए ही अवतार लिया था। और एक बार फिर लंका जाकर पौंड्रक का वध श्रीराम ने किया था।
श्रीराम की सेना का लंका प्रस्थान
श्रीराम ने अयोध्या की सेना तैयार की और एक बार फिर लंका पहुंच गए। पौण्ड्रक तो पहले से ही श्रीराम से युद्ध करना चाहता था सो श्रीराम और पौण्ड्रक की सेना के बीच भयंकर युद्ध शुरु हो गया । आखिर में प्रभु श्रीराम ने पौण्ड्रक का वध किया और फिर से लंका के सिंहासन पर विभीषण को बिठा दिया।
आनंद रामायण कितना प्रमाणित ग्रंथ है
आनंद रामायण कितना प्रामाणिक है दरअसल श्रीराम के द्वारा लंका पर दूसरी बार चढ़ाई की कथा सिर्फ आनंद रामायण में ही मिलती है। इसका कोई उल्लेख न तो श्रीराम के वक्त लिखी गई वाल्मीकि रामायण में मिलता है औऱ न ही पंद्रहवी सदी में तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस में ही इसका कोई जिक्र मिलता है।
वाल्मीकि रामायण के बाद महाभारत में कई स्थानों पर श्रीराम की कथा आती है । महाभारत श्रीराम की कथाओ का दूसरा सबसे प्राचीन ग्रंथ है। इसमें हनुमान जी और भीम की मुलाकात के दौरान भी श्रीराम की कथा आती है और युधिष्ठिर भी ऋषियों के द्वारा श्रीराम की पूरी कथा जानते हैं। लेकिन महाभारत में विस्तार से श्रीराम की कथा आने के बावजूद श्रीराम द्वारा लंका पर चढ़ाई की कोई कथा नहीं है।
महाभारत में घटोत्कच के द्वारा लंका जाकर विभीषण जी से मुलाकात का भी वर्णन है लेकिन ये कथा उस वक्त भी नहीं बताई गई है। राम कथाओं में तीसरी सबसे प्राचीन कथा कालिदास रचित रघुवंशम में आती है। इस महान ग्रंथ में भी श्रीराम के द्वारा लंका पर दूसरी बार चढ़ाई का कोई वर्णन नहीं है।
अगर हम भवभूति रचित महावीर चरितम और उत्तररामचरित को पढ़ें तो यहाँ भी ये कथा अनुपस्थित है। सिर्फ आनंद रामायण में ही ये कथा आती है इसलिए इसके सत्य होने को लेकर संदेह उपस्थित होता है। आनंद रामायण में आपको कई ऐसी कथाएँ मिलेंगी जिनकी सत्यता की जांच आवश्यक है।
कितने रामायण और कितनी राम कथाएं
श्रीराम के जीवन चरित पर लगभग दुनिया की सारी भाषाओं में कुछ न कुछ लिखा गया है। भारत ही नहीं बल्कि इंडोनेशिया. कंबोडिया मलेशिया, चीन और सिंगापुर में भी राम कथाएं प्रचलित रही हैं। रामायण कितने प्रकार की है न केवल हिंदू धर्म बल्कि जैन धर्म और बौद्ध धर्म में भी श्रीराम के जीवन से जुड़ी कई कथाएं मिलती हैं। बौद्ध धर्म के दशरथ जातक में श्रीराम को वाराणसी का राजा बताया गया है।
लेकिन इन कथाओं में बाद में जोड़ी गई बातों के बावजूद श्री राम के द्वारा लंका पर दूसरी बार चढाई करने का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। हो सकता है कि आनंद रामायण उन बिखरी हुई कथाओं पर आधारित रही हों, जो सत्य तो होंगी लेकिन इसके प्रमाण लोक कथाओं में भी पाई गईं हो और वहीं से इस पुस्तक में राम कथाओं का संकलन किया गया होगा।
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