महाभारत युद्ध की एक घटना को टीवी सीरियल्स और फिल्मों में काफी बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है कि भीम ने पिया दुःशासन का रक्त। सवाल है कि क्या वास्तव में भीम ने दुःशासन की छाती फाड़कर उसका रक्त पान किया था। ऐसी कहानियां हैं कि जब दुःशासन ने द्रौपदी का चीरहरण किया था तो उस वक्त भीम ने यह प्रतिज्ञा कर ली थी कि वो दुःशासन की भुजा उखाड़ लेगा और उसकी छाती फाड़कर खून भी पिएगा। लेकिन इस संबंध में महाभारत में ही पूरी सच्चाई मिल जाती है।
महाभारत के अनुसार यह सच है कि द्रौपदी के चीरहरण से क्रोधित होकर भीम ने दुःशासन की छाती फाड़कर खून पीने की भयंकर प्रतीज्ञा की थी, लेकिन उन्होंने रक्त का पान भी किया था या नहीं, इसे लेकर महाभारत में जो उल्लेख हुए हैं उनके बारे में आपको बताते हैं-
महाभारत के सभा पर्व के अध्याय 68 के श्लोक 52 और 53 में भीम की प्रतीज्ञा ये थी कि वो युद्ध में दुःशासन की छाती का खून पिएंगे –
यद्येतदेवमुक्त्वाहं न कुर्यां पृथ्वीश्वरा ।
पितामहानां पूर्वेषां नाहं गतिमवाप्नुयाम्।। 52
अस्य पापस्य दुर्बुद्धेर्भारतापसदस्य च ।
न पिबेयं बलाद् वक्षो भित्वा चेद् रुधिरं युधिः ।। 52
इस श्लोक में भीम कह रहे हैं कि राजाओं ! यह खोटी बुद्धि वाला दुःशासन भरत वंश के लिए कलंक है। मैं युद्ध में इस पापी की छाती फाड़कर उसका खून पीऊंगा। यदि न पीऊं तो मुझे अपने पूर्वजों की श्रेष्ठ गति न मिले।
इस प्रकार यह बात तो सच है कि भीम ने दुःशासन का खून पीने की प्रतीज्ञा की थी।
अब बात करते हैं महाभारत के युद्ध के मैदान यानि कुरुक्षेत्र की जहां भीम और दुःशासन का युद्ध हुआ। महाभारत युद्ध के 17 वें दिन भीम और दुःशासन के बीच भयंकर युद्द चल रहा था। महाभारत के कर्ण पर्व के अध्याय 43 के श्लोक में इस बात का उल्लेख मिलता है–
उत्कृत्य वक्षः पतितस्य भूमावथापिबच्छोणितमस्य कोष्णम् ।
ततो निपात्यास्य शिरोSपकृत्य तेनासिना तव पुत्रस्य राजन् ।।28
सत्यां चिकीर्षुर्मतिमान् प्रतिज्ञां भीमोSपिबच्छोणितमस्य कोष्णम् ।
आस्वाद्य चास्वाद्य च वीक्षमाणः क्रुद्धो हि चैनं निजगाद वाक्यम् ।।29
(महाभारत, कर्ण पर्व , अध्याय-83)
इन दोनों श्लोकों में संजय धृतराष्ट्र को दुःशासन की छाती फाड़कर भीम के द्वारा उसका खून पीने का वर्णन करते हुए कहते हैं कि – हे राजन ! इसके बाद पृथ्वी पर पड़े हुए दुःशासन की छाती फाड़कर भीम उसका खून पीने की कोशिश करने लगे। उठने की कोशिश करते दुःशासन को फिर से गिरा कर भीमसेन ने अपनी प्रतीज्ञा को सच साबित करने के लिए तलवार से आपके बेटे दुःशासन का सिर काट डाला और उसके कुछ गरम खून को स्वाद लेकर पीने लगे।
महाभारत के युद्ध के मैदान तक तो यही सच लगता है कि भीम ने दुःशासन का खून पिया और अपनी प्रतीज्ञा पूरी की। लेकिन जब महाभारत का युद्ध खत्म हो जाता है और पांडव विजयी होते हैं तो सभी पांडव हस्तिनापुर पहुंचते हैं। वहां भीम की मुलाकात दुर्योधन और दुःशासन की मां गांधारी से होती है। गांधारी भीम से पूछती है कि तुमने अपने ही भाई दुःशासन का खून पीने का पाप कैसे किया। तब भीम एक नई बात कह देते हैं जिससे सारा मामला ही नया हो जाता है।
भीम ने खून पीने का नाटक किया था!
महाभारत के स्त्रीपर्व के अध्याय 15 में भीम गांधारी से कहते हैं-
अन्यस्यापि न पातव्यं रुधिरं किं पुनः स्वकम् ।
यथैवात्मा तथा भ्राता विशेषो नास्ति कश्चन ।।
(महाभारत, स्त्रीपर्व, अध्याय 15, श्लोक 15)
यानि यहां भीम गांधारी से कहते हैं कि हे माता ! दूसरे का भी खून नहीं पीना चाहिए, फिर अपना ही खून कोई कैसे पी सकता है। जैसे अपना शरीर है वैसे ही भाई का भी शरीर है। अपने और भाई में कोई फर्क नहीं होता है।
इसके बाद भीम अपने चचेरे भाई दुःशासन के खून पीने के रहस्य को उजागर करते हुए कहते हैं कि –
रुधिरं न व्यतिक्रामद् दन्तोष्ठं मेSम्ब मा शुचः ।
वैवस्वतस्तु तद् वेद हस्तौ मे रुधिरौक्षितौ ।।
(महाभारत, स्त्रीपर्व, अध्याय 15, श्लोक 16)
यहां भीम अपनी बड़ी मां गांधारी से कह रहे हैं कि मां! आप शोक न करें। वह खून मेरे दांतो और होठों को लांघकर आगे नहीं जा सका था। इस बात को सूर्यपुत्र यमराज जानते हैं कि केवल मेरे दोनों हाथ ही खून से सने हुए थे।
इसके बाद भीम गांधारी को बताते हैं कि खून पीने का नाटक उन्होंने वहां मौजूद कौरव भाइयों को डराने के लिए किया था । वास्तव में उन्होंने दुःशासन का खून पीया ही नहीं था।