रामायणकालीन हथियारों की सीरीज में हम आज आपको रामायणकालीन 5 अनसुने खतरनाक अस्त्र के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे जान और सुनकर आधुनिक विज्ञान की आंखें भी चौंधिया जाएंगी। इन पांच अनसुने हथियारों के नाम सुनकर ही दुश्मनों के छक्के छूट जाएंगे। पहले हथियार का नाम है ‘शस्त्रयुक्त स्यंदन’। दूसरे हथियार का नाम है ‘सूर्यहास खड्ग’ तीसरे हथियार का नाम है ‘दारू पंच अस्त्र’ चौथे हथियार का नाम है ‘जीवन रत्न वलय’ और पांचवे हथियार का नाम है ‘दर्पण यंत्र’। रामायण कालीन ये पांचों हथियार आज के अत्याधुनिक हथियारों के अपग्रेडेड वर्जन लगते हैं।
अब हम एक-एक कर इन पांचों हथियारों के बारे में डिटेल जानकारी देते हैं। इन सभी हथियारों के बारे में उत्तर और दक्षिण भारत में लिखी गई कई रामायण, प्राचीन ग्रंथों और किवदंतियों पर हुए अनेक रिसर्च से जानकारी मिलती है।
शस्त्रयुक्त स्यंदन
सबसे पहले आपको शस्त्रयुक्त स्यंदन के बारे में बताते हैं। स्यंदन का अर्थ है रॉकेट । शस्त्रयुक्त स्यंदन का अर्थ हुआ मिसाइल और हथियारों को ले जाने में सक्षम रॉकेट।। दोस्तों प्राचीन ग्रंथों का विश्लेषण करें तो हमे पता चलता है कि मेघनाद की वेधशाला में शस्त्रयुक्त स्यंदन या हथियार वाले राकेट का निर्माण होता था।। मेघनाद ने युद्ध में जब इस स्यंदन को छोड़ा तो यह अंतरिक्ष की तरफ बड़ी तेजी से बढ़ा था। इस भयंकर रॉकेट को देखकर देवता भी हैरान रह गए थे। लेकिन देवताओं के राजा इन्द्र और वरुण देव ने तुरंत भांप लिया कि यह हमला तो स्यंदन शक्ति से किया गया है। इन दोनों देवताओं ने मतालि को तुरंत एलर्ट किया और दूसरा शक्तिशाली स्यंदन या रॉकेट छुड़वाया। यह रॉकेट मेघनाद के रॉकेट से अधिक शक्तिशाली था। देवताओं के रॉकेट ने मेघनाद के स्यंदन यानि रॉकेट को आकाश में ही नष्ट कर दिया। जिसके अवशेष हवा में उड़ते हुए समुद्र में जा गिरे।
सूर्यहास खड्ग
सूर्यहास खड्ग बेहद खतरनाक अस्त्र था। इस अस्त्र में सूर्य की ऊर्जा को भी सोख लेने की क्षमता थी। इस हथियार के छोड़े जाते ही दुश्मन सैनिक इस खड्ग से चिपक जाते थे। सूर्यहास खड्ग शत्रु का रक्त खींच लेता था। यह हथियार चुम्बक नियंत्रण शक्ति से संचालित होता था। चुम्बक से नियंत्रित यह हथियार काम खत्म होने के बाद एक तरह के रिमोट के जरिए अपने स्वामी के पास लौट आता था। शंबूक ने अपनी वेधशाला में इस अस्त्र का आविष्कार किया था। दक्षिण भारत के कुछ ग्रंथों के अनुसार लक्ष्मण ने इस सूर्यहास खड्ग को पाने के लिए ही शंबूक का वध किया था।
दारू पंच अस्त्र
दारू पंच अस्त्र नाम के खतरनाक अस्त्र का आविष्कार राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य ने किया था। लंका के सभी प्रवेश द्वार इस हथियार से लैस थे। दारू पंच असत्र को ‘रुद्र कीर्तिमुख’ का नाम भी दिया गया है।। इस यांत्रिक अस्त्र की खासियत ये थी कि सामने आ रहा शत्रु जो भी गतिविधि करता था।। उसका पूरा चित्र इस यंत्र पर उभर आता था। उसके बाद इसके मुख से आग का गोला निकलता था जो शत्रुओं का विनाश कर देता था। दारू पंच अस्त्र या रुद्र कीर्तिमुख शायद रोबोट जैसा ही था।। सुमाली की गतिविधियो पर देवराज इंद्र इसी अस्त्र के जरिए नजर रखते थे। एक बार सुमाली लौट रहा था तब इंद्र इसी यंत्र से उसे देखते हैं और उसे मारने के लिए अग्नि का गोला छोड़ते हैं। लेकिन ये घटना भगवान शिव भी देख रहे होतें हैं और सुमाली की रक्षा के लिए गोले को बीच रास्ते में ही नष्ट कर देते हैं।।
जीवन रत्न वलय
रामायणकालीन हथियारों में जीवन रत्न वलय का भी जिक्र मिलता है। इस अस्त्र को गले में पहना जाता था। कुंभकर्ण इसे अपने गले में पहनता था। इसकी खासियत यह थी कि इसके अंदर से लौ जैसी चमकीली किरणें निकलती थीं जिसके आगे शत्रु के हथियार नाकाम हो जाते थे। युद्ध के दौरान लक्ष्मण ने जब कुंभकरण पर ‘अर्धनाराच’ हथियार छोड़ा तो उसने जीवन रत्न वलय से निकली किरणों से उसे नष्ट कर दिया था
दर्पण यंत्र
दक्षिण भारत के कुछ ग्रंथों में मिलता है कि रावण के राज्य में भस्मलोचन नाम का वैज्ञानिक था जिसने एक बहुत बड़े दर्पण यत्र का निर्माण किया था। इस यंत्र का इस्तेमाल विमानों को नष्ट करने में किया जाता था। इससे निकलने वाली प्रकाश किरणों के पुंज से विमान को आकाश में ही नष्ट कर दिया जाता था।। लंका से निकाले जाते समय विभीषण अपने साथ कुछ दर्पण यंत्र लेकर आ गए थे। रामायण कालीन ऋषि और वैज्ञानिक अग्निवेश ने इन ‘दर्पण यंत्रों’ में सुधार इन्हें रावण की वायु सेना के खिलाफ इस्तेमाल किया। अग्निवेश द्वारा विकसित इन यंत्रों ने लंका की वायुसेना के ताबूत में अंतिम कील ठोक दी थी।। बाद में रावण ने दर्पण यंत्र के इस अपग्रेडेड वर्जन से निपटने के लिए सद्धासुर वैज्ञानिक को लगाया। लेकिन वो लंका की वायु सेना के पतन को रोक नहीं पाया।