श्रीमद्भगवद्गीता सनातन धर्म का सबसे महान ग्रंथ माना जाता है। श्रीमद्भगवद्गीता के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उस वक्त युद्ध के लिए तैयार किया था जिस वक्त अर्जुन को अपने सगे संबंधियों से मोह हो गया था। गीता में संपूर्ण जीवन का सार छिपा हुआ है और यह हिंदू धर्म का एकलौता ऐसा ग्रंथ है जिसका दुनिया की सबसे ज्यादा भाषाओं में अनुवाद हुआ है। श्रीमद्भगवद्गीता महाभारत का अंश है और इसके भीष्म पर्व में अर्जुन और श्रीकृष्ण के संवाद के रुप में दिखाया गया है। और 5 श्लोकों में छिपा है गीता का सार श्रीमद्भगवद्गीता को वैज्ञानिकों से लेकर दुनिया के बड़े से बड़े ज्ञानी भी एक महान ग्रँथ बताते हैं।
आत्मा अजर और अमर है
गीता के अध्याय 2 के श्लोक नंबर 22 और 23 में भगवान श्रीकृष्ण आत्मा की अजरता और अमरता के बारे में ज्ञान देते हुए कहते हैं कि आत्मा अजर और अमर है –
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-
न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।2.22।।
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।2.23।।
इन दो श्लोको में भगवान ये बताते हैं कि शरीर की मृत्यु हो सकती है लेकिन आत्मा अमर है। जैसे ही शरीर की मृत्यु होती है आत्मा एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर को धारण कर लेती है। आत्मा अजर और अमर है। इसे न तो किसी शस्त्र से छेदा जा सकता है, न ही इसे आग में जलाया जा सकता है, न ही पानी इसे गीला कर सकता है और न ही हवा इसे सुखा सकती है।
इन दो श्लोकों का पूरा अर्थ है – हे अर्जुन ! जैसे मनुष्य जैसे पुराने कपड़ों को छोड़कर दूसरे नये कपड़े धारण कर लेता है, ऐसे ही आत्मा पुराने शरीरों को छोड़कर दूसरे नये शरीरों में चली जात है। शस्त्र इस आत्मा को काट नहीं सकते, अग्नि इसको जला नहीं सकती, जल इसको गीला नहीं कर सकता और वायु इसको सुखा नहीं सकती। भगवान इन दो श्लोकों के जरिए मृत्यु के भय से मुक्त होने का रास्ता बताते हैं। भगवान इन दो श्लोकों के जरिए ये बताते हैं कि मृत्यु के बाद भी कई जीवन होते हैं। एक शरीर के नष्ट हो जाने मात्र से हमारी जिंदगी नष्ट नहीं होती क्योंकि आत्मा ही हमारा मूल तत्व है जो एक शरीर से दूसरे शरीर में प्रवेश करती रहती है। ये क्रम तब तक चलता रहता है जब तक हमें मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो जाती।
कर्म करो फल की इच्छा मत करो
भगवान श्रीकृष्ण गीता के इस श्लोक में निष्काम कर्म के सिद्धांत को रखते हैं। ऐसा कर्म जिसमें कोई लोभ या मोह नहीं हो और वो कर्म ईश्वर को समर्पित हो। ये श्लोक कुछ इस प्रकार है
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।
भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा बताया गया ये ज्ञान संसार में सबसे लोकप्रिय श्लोक माना जाता है। इस श्लोक का अर्थ ये है कर्म करो फल की इच्छा मत करो हमारा अधिकार सिर्फ हमारे कर्म में है न कि इस कर्म के करने से मिलने वाले परिणाम पर। इसलिए हमें बिना किसी रिजल्द की आशा में कर्म करना चाहिए। इसका परिणाम क्या होगा अगर हमने इस पर अपना ध्यान केंद्रित कर दिया तो हम मोह माया में बंध कर कर्म करेंगे और अगर इच्छा के अनुसार इसका फल नहीं मिलेगा तो हमें निराशा हासिल होगी। हमें अपने सारे कर्मों को ईश्वर को समर्पित कर देना चाहिए, ईश्वर ही हमें अपने कर्मों का उचित फल देगा।
गीता का ये सिद्धांत भाग्यवाद के सिद्धांत को स्थापित करता है। कई बार हमें ऐसा लगता है कि हमने बहुत मेहनत की लेकिन हमें उसका परिणाम अच्छा नहीं मिला और हम निराश हो जाते हैं। लेकिन भगवान हमारे सारे कर्मों का हिसाब रखता है और जब उसे लगता है तभी वो इसका फल देता है।
भगवान के सामने सभी बराबर हैं।
भगवान के सामने सभी बराबर हैं। दरअसल भगवान ने गीता के अध्याय 4 के श्लोक 13 में सभी इंसानों को बराबर माना है और जन्म आधारित जाति प्रथा का विरोध किया है। भगवान इस श्लोक में कहते हैं कि –
चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः।
तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम्।।4.13।।
भगवान कहते हैं कि चारो वर्णों की सृष्टि इंसानों ने नहीं की है बल्कि खुद भगवान ने की है। चारो वर्णों यानि ब्राह्म्ण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों की रचना भगवान ने जन्म के आधार पर नहीं की है बल्कि ये व्यक्ति के गुणों और कर्मों के आधार पर की है। भगवान इस श्लोक के माध्यम से सभी इंसानों को बराबरी का दर्जा देते हैं।
भक्ति से ही मुक्ति मिलती है
भगवान श्रीकृष्ण गीता के आखिरी अध्याय 18 के श्लोक 66 में समर्पण की बात कहते हैं। भगवान कहते हैं कि भक्ति से ही मुक्ति मिलती है। –
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।18.66।।
इस श्लोक में भगवान कहते हैं कि हे अर्जुन ! तुम सभी धर्मों को छोड़कर मेरी शरण में आ जाओ मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूंगा। इस श्लोक में भगवान अर्जुन से कहते हैं कि तुम सभी प्रकार के कनफ्यूजन्स को छोड़ दो। अगर तुम्हें ये शक है कि तुम किसी की पूजा करके मोक्ष को प्राप्त कर पाओगे या नहीं। या फिर तुम किसी कर्म को कर पाप से बंध तो नहीं जाओगे। या फिर किसी कर्म को करने से या किसी धर्म को मानने से तुम्हें भगवान मिलेंगे या नहीं। तो ऐसी स्थिति में तुम सिर्फ मेरी यानी भगवान की शरण में आ जाओ और अपनी सारी चिंताओं को छोड़कर मेरी भक्ति कर लो। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूंगा। गीता का ये श्लोक भगवान की पूर्ण भक्ति करने का आदेश देता है। भगवान पर पूरा भरोसा करने का आदेश देता है। गीता के इन 5 श्लोकों में छिपा है गीता का सार जिनको पढ़ने और समझने से हमें आत्मा से परमात्मा का ज्ञान हो जाता है।