सनातन धर्म के ग्रंथों में मनुष्य की आयु कम से कम 100 साल मानी गई है। मनुष्य की आयु 100 साल मान कर ही हिंदू धर्म में आश्रम व्यवस्था का विधान किया गया है। जिसमें 25 वर्ष ब्रह्मचर्य आश्रम, 25 वर्ष गृहस्थ आश्रम, 25 वर्ष वानप्रस्थ आश्रम और 25 वर्ष संन्यास आश्रम की व्यवस्था की गई है। परन्तु आज स्थिति है यह है कि हजारों में कुछ लोग होते हैं जो 100 वर्ष की उम्र पूरी कर पाते हैं। सवाल उठता है कि हम क्या करें कि यह निश्चित हो जाए कि हम 100 साल तक जीवित रहेंगे, उससे पहले मरेंगे नहीं। क्या है लंबी उम्र का राज और क्या है 100 साल लंबी उम्र का रहस्य इस सवाल का जवाब भी हमें सनातन धर्म के ग्रंथों में ही मिलता है।
महाभारत में 100 साल उम्र का राज
महाभारत के अनुशासन पर्व में शतायु होने के उपाय बताए गए हैं। इन उपायों का पालन करने से कोई भी इंसान बिना किसी रोग के स्वस्थ रह कर सौ साल तक जी सकता है। इस संबंध में महाभारत के अनुशासन पर्व में युधिष्ठिर और भीष्म के बीच संवाद है। महाभारत के अनुशासन पर्व के अध्याय 104 के पहले श्लोक में युधिष्ठिर भीष्म पितामह से प्रश्न करते हैं –
शतायुरुक्तः पुरुषः शतवीर्यश्च जायते ।
कस्मान्म्रियन्ते पुरुषा बाला अपि पितामह ।।
अर्थात्– पितामह! शास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य की आयु सौ वर्ष की होती है।वह सैंकड़ों प्रकार की शक्ति लेकर जन्म धारण करता है। किंतु देखता हूं कि कितने ही मनुष्य बचपन में ही मर जाते हैं। ऐसा क्यों होता है?
युधिष्ठिर इसके बाद फिर अगले श्लोक में पूछते हैं कि –
आयुष्मान् केन भवति अल्पायुर्वापि मानवः।
केन वा लभते कीर्तिं केन वा लभते श्रियम ।।
अर्थात्- मनुष्य किस उपाय से दीर्घायु होता है अथवा किन उपायों से उसकी आयु कम हो जाती है? क्या करने से वो कीर्ति पाता है या क्या करने से उसे संपत्ति की प्राप्ति होती है?
100 साल जीने के लिए क्या करना चाहिए
महाभारत के श्लोकों में शरशय्या पर लेटे भीष्म पितामह युधिष्ठिर को दीर्घायु या शतायु होने के उपाय बताते हैं। भीष्म ऐसी कई बातें बताते हैं जिनका पालन करने से कोई भी मनुष्य सौ साल से अधिक की आयु प्राप्त कर सकता है। हम एक-एक कर इनके बारे में आपको आगे बताते हैं
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- धर्मयुक्त सदाचार का पालन
महाभारत के अनुशासन पर्व में भीष्म कहते हैं कि –
आचाराल्लभते ह्रायुराचाराल्लभते श्रियम ।
आचारात् कीर्तिमाप्नोति पुरुषः प्रेत्य चेह च ।।
(महाभारत , अनुशासन पर्व , श्लोक 6)
अर्थात् – सदाचार से ही मनुष्य को आयु प्राप्त होती है, सदाचार से ही मनुष्य संपत्ति पाता है तथा सदाचार से ही उसे इहलोक और परलोक में भी कीर्ति की प्राप्ति होती है। और ऐसा करने से 100 साल जीना संभव है।
भीष्म आगे कहते हैं कि –
आचारलक्षणो धर्मः संतश्चारित्रलक्षणाः ।
साधूनां च यथावृत्तमेतदाचारलक्षणम् ।।
(महाभारत, अनुशासन पर्व, श्लोक 9)
अर्थात् – सदाचार ही धर्म का लक्षण है। सच्चरित्रता ही श्रेष्ठ पुरुषों की पहचान है। श्रेष्ठ पुरुष जैसा व्यवहार करते हैं, वही सदाचार का स्वरुप या लक्षण है।
इसके बाद के श्लोक में भीष्म सदाचार को शुभ लक्षणों से भी अधिक महत्व देते हैं-
सर्वलक्षणाहीनोSपि समुदाचारवान् नरः ।
श्रद्द्धानोंSनसूयुश्च शतं वर्षाणि जीवति ।।
(महाभारत, अनुशासन पर्व, श्लोक 13)
अर्थात्- सब प्रकार के शुभ लक्षणों से हीन होने के बाद भी जो मनुष्य सदाचारी, श्रद्धालु और दूसरों में दोष न देखने वाला होता है वह सौ वर्षों तक जीवित रहता है।
स्पष्ट है कि भीष्म सौ वर्ष की आयु प्राप्त करने के लिए अच्छे आचरण को सबसे ज्यादा महत्त्व देते हैं। वो कहते हैं कि किसी में कोई गुण हो या न हो लेकिन उसका आचरण अच्छा है तो उसे सौ वर्ष तक जीने से कोई रोक नहीं सकता है।
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- सुबह और शाम संध्या उपासना
भीष्म सौ वर्षों तक जीवित रहने का दूसरा उपाय बताते हुए कहते हैं –
ऋषयो नित्यसंध्यत्वाद् दीर्घमायुरवाप्नुवन् ।
तस्मात् तिष्ठेत् सदा पूर्वां पश्चिमां चेव वाग्यतः ।।
(महाभारत, अनुशासन पर्व, श्लोक 18)
अर्थात् – ऋषियों ने प्रतिदिन उपासना से ही दीर्घ आयु प्राप्त की थी। इसलिए सदा मौन रह कर सुबह और शाम संध्या उपासना जरुर करनी चाहिए।
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- पराई स्त्री के साथ शारीरिक संबंध नहीं रखना
भीष्म पितामह युधिष्ठिर को सौ वर्षों से ज्यादा उम्र पाने के लिए जो तीसरा उपाय बताते हैं वो भी हमारे चरित्र से ही संबंधित है। भीष्म कहते हैं कि किसी भी हाल में किसी भी पराई स्त्री या दूसरे की पत्नी के साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाना चाहिए, इससे कम उम्र में ही मृत्यु होने का खतरा होता है।
भीष्म पितामह कहते हैं कि –
परदारा न गन्तव्या सर्ववर्णेषु कर्हिचित् ।
न हीदृशमनायुष्यं लोके किंचन विद्यते ।।
(महाभारत, अनुशासन पर्व, श्लोक 20)
अर्थात् – किसी भी वर्ण के पुरुष को कभी भी किसी भी पराई स्त्री के साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाना चाहिए। पराई स्त्री के साथ संबंध बनाने से मनुष्य की आयु जल्दी ही समाप्त हो जाती है।
मेडिकल साइंस भी आज यही बात कह रहा कि असुरक्षित और अनजाने लोगों के साथ शारीरिक संबंध बनाने से कई गुप्त रोगों के होने का खतरा होता है जिनमें एड्स जैसे जानलेवा रोग शामिल हैं।
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- प्रतिदिन अपने दांतों को साफ करना चाहिए
आचरण के बाद भीष्म पितामह शरीर की शुद्धि की बात करते हैं। भीष्म जी कहते हैं कि –
अमावस्यामृते नित्यं दंतधावमाचरेत ।
अर्थात – अमावस्या को छोड़ कर प्रतिदिन अपने दांतो को साफ रखना चाहिए।
इस संबंध में वो आगे कहते हैं-
वर्जयेद् दन्तकाष्ठानि वर्जयानमि नित्यशः ।
भक्षयेच्छास्त्रदृष्टानि पर्वस्वपि विविर्जयेत ।।
(महाभारत, अनुशासन पर्व, श्लोक 44)
अर्थात् – शास्त्रों में जिन लकड़ियों या दातून से दांतों को साफ करने की मनाही है उन्हें सदा के लिए त्याग देना चाहिए और शास्त्रों में बताई गई दातून से ही दांतों को साफ करना चाहिए।
मेडिकल साइंस भी कहती है कि मुंह की गंदगी की वजह से हम कई रोगों के शिकार हो जाते हैं। मुंह के जरिए ही कई प्रकार के बैक्टिरिया और वायरस का हमारे शरीर के अंदर प्रवेश होता है।
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- सही स्थान पर शौच से सौ वर्ष की आयु पा सकते हैं
चिकित्सा विज्ञान कहता है कि हमारे बहुत से रोगों की वजह हमारे शरीर को स्वच्छ न रखना है जिससे हमारे शरीर में बैक्टिरिया और वायरस का प्रकोप बढ़ जाता है और हमें जानलेवा बीमारियां हो सकती है। महाभारत के अनुशासन पर्व में भी भीष्म पितामह स्वच्छता पर विशेष जोर देते हुए कहते हैं-
कृत्वा मूत्रपुरीषे तु रथ्यामाक्रम्य वा पुनः ।
पादप्रक्षालनं कुर्यात् स्वाध्याये भोजने तथा।।
(महाभारत, अनुशासन पर्व, श्लोक 39)
अर्थात् – मल मूत्र त्यागने और रास्ता चलने के बाद पैर जरूर धोना चाहिये। इसके अलावा स्वाध्याय और भोजन करने से पहले भी पैर धो लेना चाहिए। कोरोना काल में इस प्रकार की स्वच्छता की मुहिम पूरे विश्व में चलाई गई थी।
भीष्म महामारियों से बचने का भी उपाय बताते हैं। वह कहते हैं-
नोत्सृजेत पुरीषं च क्षेत्रे ग्राम्स्य चान्तिके ।
उभे मूत्रपुरीषे तु नाप्सु कुर्यात् कदाचन ।।
(महाभारत, अनुशासन पर्व, श्लोक 54)
अर्थात्- खेतों में, गांवों या रिहायशी इलाकों में खुलें स्थानों पर तथा पानी में कभी मल मूत्र का त्याग न करें।
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- सही तरीके से स्नान करें
महाभारत में रोज अपने शरीर को साफ करने के लिए स्नान को बहुत आवश्यक माना गया है। भीष्म पितामह युधिष्ठिर को बताते हैं कि किस प्रकार से स्नान करना चाहिए। भीष्म कहते हैं कि –
न संध्यायां परिचरेद् भिक्षा दद्याच्च नित्यदा ।
न नग्नः कहिर्चित स्नायान्न निशायां कदाचन ।
अर्थात् – शाम को सोना नहीं चाहिए और नित्य स्नान करना चाहिए। विद्वान पुरुष कभी नग्न होकर स्नान न करे और रात में कभी न नहाए।
अनुशासन पर्व के एक श्लोक में भीष्म पितामह ये भी कहते हैं कि हजामत बनाने के बाद स्नान स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है।
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- सौ साल की उम्र पाने के लिए ऐसे भोजन करें
भीष्म पितामह महाभारत के अनुशासन पर्व में युधिष्ठिर को भोजन करने के सही तरीके के बारे में भी बताते हैं । भीष्म कहते हैं कि –
प्रांगमुखो नित्यमश्नीयाद् वाग्यतोSन्नमकुत्सयन ।
प्रस्कन्दयेच्च मनसा भुक्तवा चाग्निमुपस्पृशेत ।।
(महाभारत, अनुशासन पर्व, श्लोक 56)
अर्थात् – भोजन करने वाला पुरुष प्रतिदिन पूर्व की ओर मुख करके मौन भाव से भोजन करे। भोजन करने समय परोसे हुए अन्न की निंदा न करे। थोड़ा सा अन्न थाली में छोड़ दे और भोजन करके मन ही मन अग्नि का स्मरण करे ।
भीष्म पितामह आगे के श्लोकों में कहते हैं कि हमेशा बैठ कर ही भोजन करना चाहिए और चलते फिरते भोजन नहीं करना चाहिए। एक थाली में एक ही व्यक्ति को भोजन करना चाहिए। किसी अपवित्र या गंदे शरीर वाले व्यक्ति के सामने भोजन नहीं करना चाहिए।
भीष्म कहते हैं कि –
सायंप्रातश्च भुञजीत नान्तराले समाहितः ।
वालेन तु न भुञञ्जित परश्राद्धं तथैव च ।।
(महाभारत, अनुशासन पर्व, श्लोक 94)
अर्थात् – प्रतिदिन सुबह और शाम को ही भोजन करना चाहिए। बीच में कुछ भी खाना उचित नहीं है। जिस भोजन में बाल पड़ गया हो, उसे नहीं खाना चाहिए और शत्रु के श्राद्ध का भी भोजन खाने से परहेज करना चाहिए।
भीष्म कहते हैं कि भोजन के पदार्थ को जमीन पर रख कर नहीं खाना चाहिए उससे कई प्रकार की अशुद्धियों की संभावना हो जाती है। भीष्म ये भी कहते हैं कि रात में ज्यादा भोजन नहीं करना चाहिए और ना ही किसी को कराना चाहिए। इस बात को भीष्म ने युधिष्ठिर को इस श्लोक के जरिए समझाया है –
सौहित्यं न च कर्तव्यं रात्रौ न च समाचरेत् ।
द्विजच्छेदं न कुर्वीत भुक्तवा न च समाचरेत् ।।
महाभारत, अनुशासन पर्व, श्लोक 121
अर्थात् – रात में न तो ज्यादा भोजन करें और न ही दूसरों को जरुरत से ज्यादा भोजन कराएं। भोजन करके दौड़ें नहीं और ब्राह्मणों का वध न करें।
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- आयु कम करने वाले भोजन
भीष्म पितामह कुछ विशेष प्रकार के भोजन को नहीं करने की भी सलाह देते हैं। भीष्म कहते हैं कि –
त्रिणि देवाः पवित्राणि ब्राह्मणानामकल्पयन ।
अदृष्टमद्भिर्निर्णिक्तं यच्च वाचा प्रशस्यते ।।
(महाभारत, अनुशासन पर्व, श्लोक 40)
अर्थात् – जिस पर किसी की दूषित दृष्टि न पड़ी हो, जो जल से धोया गया हो, तथा जिस भोजन की ब्राह्मण लोग अपनी वाणी से प्रशंसा करते हों- ऐसा भोजन उपयोग के योग्य और पवित्र बताया गया है।
भीष्म अनुशासन पर्व के अध्याय 104 के कुछ श्लोकों में कहते हैं कि नमत हाथ में लेकर चाटना नहीं चाहिए। रात में दही और सत्तू नहीं खाना चाहिए। मांस का सर्वथा त्याग करना चाहिए।
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- जूठे मुंह रहने से आयु कम होती है
भीष्म पितामह युधिष्ठिर से कहते हैं कि खाना खाने के बाद जूठे मुंह रहने से भी कई प्रकार की बीमारियां हो सकती हैं। इसलिए भोजन करने के बाद मुंह जरूर साफ करना चाहिए। भीष्म कहते हैं कि –
अन्नं बुभुक्षमाणस्तु त्रिमुखेन स्पृशेदपः ।
भुक्तवा चान्नं तथैव त्रिर्द्धिः पुनः परिमार्जयेत ।।
(महाभारत, अनुशासन पर्व, श्लोक 55)
अर्थात्- भोजन करने की इच्छा वाला पुरुष पहले तीन बार मुख का जल से आचमन करे। फिर भोजन के बाद भी तीन बार अपने मुँह को धोए, फिर अपने अंगूठे के मूल भाग से दो बार मुंह को पोंछे।
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- गंदी जगहों पर बैठने से उम्र कम हो जाती है
भीष्म कहते हैं कि हमेशा साफ-सुथरी जगह पर ही बैठना चाहिए। किसी भी गंदे स्थान पर बैठने से बीमारियों के होने का खतरा बढ़ जाता है । भीष्म कहते हैं कि –
नाधितिष्ठेत तुषं जातु केशभस्मकपालिकाः ।
अनयस्य चाप्यवस्नातं दूरतः परिवर्जयेत ।।
अर्थात- भूसी, भष्म बाल और मुर्दे की खोपड़ी आदि पर कभी नहीं बैठना चाहिए। दूसरे के नहाए जल का भी दूर से ही त्याग कर देना चाहिए।
इसके अलावा भी भीष्म कई जगह बैठने से परहेज करने की बात कहते हैं-
न भग्ने नावशीर्णे न शयने प्रस्वपीत च ।
नान्तर्धाने न संयुक्ते न च तिर्यक् कदाचन ।।
अर्थात- टूटी और ढीली खाट पर नहीं सोना चाहिए। अंधेरे में पड़ी हुई पलंग पर भी अचानक सोना नहीं चाहिए । किसी दूसरे के साथ एक पलंग पर नहीं सोना चाहिए। इसी प्रकार पलंग पर तिरछे हो कर नहीं बल्कि सीधे होकर सोना चाहिए।
टूटी खाट या ढीली खाट पर सोने से व्यक्ति के गिरने का खतरा हो सकता है जिससे उसे चोट लग सकती है। उसी प्रकार अंधेरे में पड़ी खाट पर हो सकता है कि कोई जहरीला प्राणी जैसे सांप, बिच्छू मौजूद हो। तीसरी बात कि किसी दूसरे के साथ पलंग पर सोने से उस व्यक्ति की बीमारी से संक्रमित होने का खतरा हो सकता है। महाभारत में भीष्म ने शतायु होने के जो उपाय बताए हैं वे सभी तार्किक और वैज्ञानिक हैं। इनके पालन से लंबे जीवन की संभावना बढ़ती है।