हिंदू धर्म ग्रंथों में देवी देवताओं के अलावा राक्षस और राक्षसियों का वर्णन भी मिलता है । सभी राक्षस या राक्षसियाँ हमेशा बुरे ही नहीं होते थे क्योंकि सनातन हिंदू धर्म का मानना है कि कोई भी प्राणी न तो अपने आप में बुरा होता है या अच्छा होता है । रामायण और महाभारत में कई ऐसी राक्षसियों का वर्णन मिलता है जो न केवल विदुषी थीं बल्कि उनका नाम धर्म में सम्मान से लिया भी जाता है । इसके अलावा कई ऐसी राक्षसियाँ भी थीं जिन्होंने अधर्म का साथ दिया था। रामायण काल की दस प्रमुख राक्षसियां जो धर्म और अधर्म का ध्यान ना रखते हुए भगवान की समीपता को प्राप्त किया।
रामायण के राक्षस और राक्षसियाँ
आपने टीवी सीरियल रामायण में श्रीराम और रावण के युद्ध को देखा ही होगा। श्रीराम के साथ जहाँ वानरों की सेना थी वहीं रावण के साथ महा बलशाली राक्षसों की सेना थी। रावण की सेना के राक्षस इतने बलशाली और मायावी थे कि उनसे देवता भी थर-थर कांपते थे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रामायण में कुछ ऐसी राक्षसियों का वर्णन भी है, जो राक्षसों से शक्ति के मामले में किसी भी प्रकार से कम नहीं थी। कुछ राक्षसियों से तो देवता भी कांपते थे। ये राक्षसियां ऋषि-मुनियों को खा जाती थीं। लेकिन सभी राक्षसियाँ बुरी ही थीं ऐसी बात भी नहीं है। कुछ ऐसी भी राक्षसियाँ थीं जो शक्तिशाली होने के बावजूद दिल की बहुत अच्छी थीं।
रामायण की खतरनाकम राक्षसी ताटका
वाल्मीकि रामायण में सबसे पहले जिस राक्षसी का वर्णऩ आता है उसका नाम ताटका था। राक्षसी ताटका अपने पुत्रों मारीच और सुबाहु के साथ वन में ऋषि मुनियों को मार कर खा जाती थी । वो ऋषियों के यज्ञों को विध्वंस कर देती थी। विश्वामित्र ताटका के वध के लिए राजकुमार श्रीराम को दशरथ से मांग कर ले जाते हैं और श्रीराम ताटका राक्षसी का एक ही बाण से वध कर देते हैं।
रावण की बहन राक्षसी शूर्पनखा
राक्षसी शूर्पनखा रावण की बहन और कैकसी की पुत्री थी। उसका रुप अत्यंत विकराल था ।रामायण महाकाव्य में वर्णन मिलता है कि वो श्रीराम और लक्ष्मण को देख कर मोहित हो जाती है और श्रीराम से विवाह करने का निवेदन करती है।
राम के मना करने के बाद वो लक्ष्मण से विवाह करने का आग्रह करती है, जिसे लक्ष्मण ठुकरा देते हैं। इस बात से क्रोधित होकर जब वो माता सीता की हत्या का प्रयास करती है तो माँ सीता की रक्षा के लिए लक्ष्मण शूर्पनखा के नाक और कान काट देते हैं। अपमानित शूर्पनखा रावण के पास जाती है और उसे सीता के अपहरण का सुझाव देती है। इसी के बाद रावण माँ जानकी का अपहरण करता है और अंत में श्रीराम और रावण का युद्ध होता है।
रामायण की खतरनाक राक्षसी अयोमुखी
वाल्मीकि रामायण के दक्षिण भारतीय संस्करण में राक्षसी अयोमुखी नाम की एक राक्षसी का वर्णन मिलता है, जो बहुत ही शक्तिशाली थी। जब श्रीराम और लक्ष्मण माँ जानकी की खोज में जंगल में भटक रहे थे , तब अयोमुखी लक्ष्मण जी को देख कर मोहित हो जाती है और वो लक्ष्मण जी का अपहरण कर लेती है। लेकिन वीर लक्ष्मण जी अयोमुखी की कैद से छूट जाते हैं और उसके नाक कान काट कर उसे भागने के लिए मजबूर कर देते हैं।
समुद्र में रहने वाली राक्षसी सिंहिका
वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस जैसी प्रसिद्ध रामकथाओं में एक बहुत ही खतरनाक राक्षसी का वर्णन आता है जो अपनी माया से किसी भी प्राणी की छाया को पकड़ लेती थी और फिर धीरे धीरे उस प्राणी के अपने कब्जे में कर उसे मार डालती थी। इसका नाम था राक्षसी सिंहिका।
राम कथा के अनुसार जब वीर हनुमान जी लंका की ओर प्रस्थान कर रहे थे तो बीच समुद्र में राक्षसी सिंहिका उनकी छाया को पकड़ लेती है जिससे हनुमान जी के लिए आगे बढ़ना मुश्किल हो जाता है । लेकिन महावीर हनुमान जी उसका वध कर देते हैं और इसके बाद लंका के लिए प्रस्थान कर जाते हैं।
लंका की राक्षसी लंकिनी
राक्षसी लंकिनी लंका के द्वार की रक्षा करती थी ।वाल्मीकि रामायण में वर्णन मिलता है कि जब हनुमान जी माता सीता के खोज में लंका जा रहे थे ।तब उनका पहला सामना लंकिनी से ही हुआ था ।वह उनको लंका में प्रवेश करने से रोक रही थी ।तभी हनुमान जी ने उस पर प्रहार किया जिससे वह घायल हो गयी। इसके बाद लंकिनी ने हनुमान जी से प्रणाम करते हुए बोली- “हे वीर ! ब्रह्मा जी ने मुझसे कहा था कि जब कोई वानर तुम्हें पराजित कर दे ,तो समझ जाना लंका का एवं राक्षसों का विनाश का समय आ गया है।”
रामायण की राम भक्त राक्षसी त्रिजटा
त्रिजटा रामायण की प्रमुख राक्षसियों में से एक थी । रावण ने उसे माता सीता की सुरक्षा में रखा था,लेकिन वह अशोक वाटिका में पूर्ण रूप से माँ सीता की सेवा करती थी ।लंका में माता सीता जब भी रोती थीं..तो राम भक्त राक्षसी त्रिजटा हमेशा उन्हे समझाती थी-
सपनें बानर लंका जारी। जातुधान सेना सब मारी॥
खर आरूढ़ नगन दससीसा। मुंडित सिर खंडित भुज बीसा॥3
(रामचरितमानस,सुन्दरकांड,दोहा-10)
रामचरितमानस के सुंदर कांड में एक प्रसंग है,जिसमें वह सभी राक्षसियों से अपने सपने के बारे में बताती है कि कैसे एक बंदर अपनी पूँछ से सारी लंका के जलाने वाला है और सभी राक्षसों की सेना का संहार होने वाला है। कैसे उसने सपने में लंकापति रावण को गधे पर बैठ कर पूरी लंका में घूमते हुए देखा है। त्रिजटा के इस सपने को सुनकर सभी डर गए थे। बाद में त्रिजटा का ये सपना साकार हो जाता है । हनुमान जी लंका जला देते हैं और बाद में श्रीराम लंका आकर रावण का वध भी कर देते हैं और सारी लंका का विनाश हो जाता है।
रावण पत्नी मंदोदरी
रावण पत्नी मंदोदरी रामायण के प्रमुख पात्रों में एक थी ।वह रावण की पटरानी और मयासुर की पुत्री थी। वह रावण को हमेशा अच्छी सलाह देती थी। दानव कुल से होने के बाद भी उसकी गणना पंचकन्याओं में की जाती है। उसकी माता हेमा, एक अप्सरा थी ।दरअसल मयासुर ने रावण को ब्रह्माजी के कुल का बालक समझ कर अपने पुत्री का विवाह किया था। कुछ कथाओं में महारानी मंदोदरी को पृथ्वी की सबसे सुंदर महिला बताया जाता हैं। उसने आजीवन पतिव्रता नारी होने का फर्ज निभाया और उसे चिरकुमारी भी कहा गया है। मंदोदरी पर कभी भी बुढ़ापे का असर नहीं हुआ।
रावण की दूसरी पत्नी विंध्यमालिनी
राक्षसी विंध्यमालिनी रावण की दूसरी पत्नी थी। वैसे रामायण में उसका जिक्र बहुत कम ही मिलता है ।वाल्मीकि रामायण में एक जगह जिक्र मिलता है कि वह रावण के मारे जाने के बाद विलाप कर रही थी। उसके एक पुत्र अतिकाय का भी वाल्मीकि रामायण में वर्णन आता है जो बहुत ही पराक्रमी था। विंध्यमालिनी का ही एक पुत्र अक्ष कुमार भी था जिसका वध हनुमान जी ने उस वक्त किया था जब वो माँ सीता की खोज में लंका गए थे।
रावण की माता राक्षसी कैकसी
राक्षसी कैकसी, राक्षस सुमाली की पुत्री और रावण की माता थी ।जब भगवान विष्णु ने सुमाली और उनके भाइयों को पराजित कर लंका छोड़ने के लिए बाध्य कर दिया था तब सुमाली ने अपनी पुत्री कैकसी को विश्रवा के पास ऐसी संतान उत्पन्न करने के लिए भेजा था जो देवताओ को पराजित कर सके।
अपने पिता की आज्ञा से कैकसी ने ऋषि पुलस्त्य के पुत्र विश्रवा से विवाह किया था । एक दिन की बात है शाम के समय ऋषि विश्रवा तपस्या कर रहे थे,तभी कैकसी उनके पास जाकर बोली “मैं आपसे विवाह करना चाहती हूं । उसकी बातों को सुनकर विश्रवा ने कहा “तुम शाम की बेला में आयी हो, इसलिए तुमसे मेरे जो भी पुत्र होंगे वो राक्षस स्वभाव के ही पुत्र होंगे ।“लेकिन वे तीनों लोकों में सर्वशक्तिमान होंगे। ऋषि की बात सुनकर कैकसी उनके चरणों में गिर पड़ी और बोली “आप तो महात्मा हैं । मैं सिर्फ दुराचारी पुत्रों को नहीं पाना चाहती हूं ।” विश्रवा ने कहा “तुम्हारा जो सबसे छोटा पुत्र होगा वह धर्मात्मा होगा तथा मेरे वंश के अनुरुप काम करेगा।”
विभीषण की पत्नी सरमा
राक्षसी सरमा लंकापति रावण के छोटे भाई विभीषण की पत्नी थी ।वह पहले गन्धर्वराज शैलूष की कन्या थी ।वह धर्म और आस्था में विश्वास रखती थी ।वाल्मीकि रामायण में वर्णन मिलता है कि उसका जन्म मानसरोवर के तट पर हुआ था ।
दरअसल इसके पीछे एक कहानी है कि..उसके जन्म के समय वर्षा ऋतु का आगमन हुआ । मानसरोवर के जल स्तर को देखकर उसकी माता ने घबराकर कहा सरोवर तुम अपने जल स्तर को बढ़ने न दो, इसलिए उसका नाम सरमा पड़ा। वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड में सरमा को माता सीता की सखी बताया गया है वह भी त्रिजटा की तरह माता सीता की रक्षा करती थी।