रामायण के एक बहुत प्रसिद्ध प्रसंगों में एक वालि वध का प्रसंग आता है जिसको लेकर श्रीराम के उपर बहुत सारे लांक्षण लगाए जाते हैं। ज्यादातर लोगों का यही कहना है कि श्रीराम ने वालि को छिप कर मारा था, इसलिए श्रीराम ने ये महापाप किया था। श्रीराम की सारी वीरता और उनके धर्म परायण होने को लेकर उन पर ये सबसे बड़ा आरोप है कि अगर वो धर्म के अनुसार चलने वाले ईश्वरीय अवतार थे और वो उस वक्त संसार के सबसे बड़े वीर थे तो उन्होंने वाली का वध छिप कर क्यों किया?
श्रीराम ने वाली को छिप कर मारा था?
कुछ विद्वानों का तर्क है कि ये वालि के पास एक विशेष वरदान था जिसकी वजह से वो जिस भी शत्रु के सामने आता था उसकी आधी शक्ति वो अपने अंदर ले लेता था ।इस वरदान की वजह से ही श्रीराम को उस छिप कर मारना पड़ा था,क्योंकि श्रीराम वाली को इंद्र से मिले इस वरदान का अपमान नहीं करना चाहते थे इसलिए उन्होंने ऐसा किया ।
वाली के पास थी अद्भुत माला
कुछ लोग ये भी कहते हैं कि वालि के पास एक ऐसी माला थी जिसे पहन कर वो जब भी युद्ध में उतरता था तो उस माला की शक्ति की वजह से शत्रु की आधी शक्ति उसके पास चली जाती थी. इसलिए श्रीराम ने वालि का छिप कर वध किया ।
वाली के पास शत्रु की आधी शक्ति लेने का वरदान था?
वालि के पास ऐसा कोई वरदान नहीं था जिससे वो अपने शत्रु की आधी शक्ति अपनी तरफ खींच ले और न ही उसके पास ऐसी कोई माला थी जिसे पहनने के बाद वो शत्रु की आधी शक्ति ले लेता था। वाल्मीकि रामायण में ऐसे किसी भी वरदान या माला को कोई उल्लेख नहीं मिलता है। उसके पास एक माला जरुर थी जो सोने की बनी हुई थी और उसे उसके पिता इंद्र ने उसे दिया था,लेकिन वाल्मीकि रामायण में इस माला के अंदर ऐसी कोई शक्ति थी इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता है।
वालि का वध श्रीराम ने छिप कर नहीं बल्कि उसके साथ आमने सामने के युद्ध में किया था और वाली श्रीराम के साथ युद्ध में मारा गया था न कि वालि का वध श्रीराम ने धोखे से किया था। वाल्मीकि रामायण का ये श्लोक इस सच को उजागर कर देता है कि श्रीराम और वाली के बीच युद्ध हुआ था और उन्होंने उसका वध छिप कर नहीं किया था
क्षिप्तान् वृक्षान् समाविध्य विपुलाश्च तथा शिलाः ।
वालि वज्रसमैर्बाणैर्वज्रेणेव निपातितः।।
अर्थात- वालि के चलाए हुए वृक्षों और बड़ी बड़ी शिलाओं को अपने वज्रतुल्य बाणों से विदीर्ण करके श्रीराम ने वालि को मार गिराया है । मानो वज्रधारी इंद्र ने अपने वज्र के द्वारा किसी महान पर्वत को धाराशायी कर दिया है ।
ये श्लोक वाल्मीकि रामायण के 19 वें सर्ग का 12 वाँ श्लोक है, जिसमें श्रीराम के द्वारा वालि को मार गिराये जाने की सूचना वालि की वानर सेना के बंदर वालि की पत्नी को देते हैं।
इस श्लोक से ये साफ साफ पता चलता है कि श्रीराम और वाली में युध्ध हुआ था और श्रीराम ने छिपकर वाली को नहीं मारा था। हां ! पिछले श्लोकोंसे ये जरूर पता चलता है कि श्रीराम एक वृक्ष की ओट लेकर खड़े ज़रूर हुए थे। लेकिन, जब वाली ने सुग्रीव को छोड़ कर श्रीराम पर पत्थरों और वृक्षों से हमला किया तब श्रीराम ने उसका जवाब अपने बाणों से दिया और इसके बाद उसका वध किया। वृक्ष की ओट में खड़ा होना और छिप कर मारना दो अलग अलग बातें हैं। वृक्ष की ओट में श्रीराम के खड़े होने से ही ये नैरेटिव चला कि राम ने वाली का छिप कर वध किया।
एंडमंड बर्क की कहानी ओशो की जुबानी
इसको समझने के लिए ओशो की बताई एक कहानी का उदाहरण दिया जा सकता है । ओशो ने एक कहानी सुनाई थी विश्व विख्यात इतिहासकार एंडमंड बर्क की जो कुछ इस प्रकार है। कहा जाता है कि जब एंडमंड बर्क विश्व इतिहास की अपनी सबसे प्रामाणिक पुस्तक लिख रहे थे तो अचानक उनके घर के बाहर गोली चलने की आवाज सुनाई पड़ी । एंडमंड बर्क उस गोली की आवाज सुनते ही घर के बाहर पहुंचे तो वो देखते हैं कि जिसने गोली मारी है वो वहीं खड़ा है और जिसे गोली लगी है वो भी सामने घायल अवस्था मे पडा है और वहाँ काफी चश्मदीदों की भीड़ भी खड़ी है ।
सत्य के अनेक पहलू होते हैं जिसने गोली मारी उसका कहना था कि ये व्यक्ति बदमाश था इसलिए उसने उसे गोली मारी । जिसे गोली लगी थी वो कह रहा था कि जिसने गोली मारी वही अपराधी है । भीड़ बंटी हुई थी कोई हत्यारे का समर्थन कर रहा था तो कोई जिसे गोली लगी थी उसके पक्ष में बातें कर रहा था।
एंडमंड बर्क ने लिखा कि घर के बाहर ये घटना हुई और मैं वहाँ तुरंत पहुंच गया ।चश्मदीद भी वहीं खड़े थे । लेकिन सत्य क्या था उसका पता नहीं चल पा रहा था और मैं पूरे विश्व का प्रामाणिक इतिहास लिखने का दावा कर रहा हूँ।
वाली वध के सत्य के भी अनेक पहलू हैं
रामायण का ये श्लोक सत्य की इसी तलाश को बताता है। वालि जिसे बाण लगा था वो क्रोध में था और क्रोध में आकर वो श्रीराम पर आरोप पर आरोप लगाए जा रहा था… वालि का कहना था कि श्रीराम ने उसे धोखे से मारा था। श्रीराम के पक्ष में सुग्रीव और हनुमान जैसे सत्यवादी वानर थे वो चुप थे, क्योंकि उन्होंने इसे अपने सामने घटित होते देखा था । सुग्रीव को इस घटना को देख कर ये विश्वास हो गया था कि श्रीराम ने वालि जैसे शक्तिशाली शत्रु को मार गिराया है। अगर सुग्रीव ने ये देखा होता कि श्रीराम ने वालि को छिप कर मारा है तो वो कभी भी श्रीराम को भगवान तुल्य नहीं बताता। हनुमान जी भी श्रीराम के भक्त नहीं बनते। श्रीराम पर हनुमान जी की श्रद्धा इतनी नहीं होती अगर उनके अंदर वाली को सीधे मारने की क्षमता नहीं होती।
वाली के पक्ष के वानरों ने बताया सत्य
इधर वालि के पक्ष के वानरों ने भी इस घटना को अपने सामने घटित होते देखा था और उसे जस का तस उन्होंने वालि की पत्नी को भी बता दिया । लेकिन फिर भी वालि का ये नैरेटिव चल पड़ा क्योंकि बाद के काल में श्रीराम के अंदर भी छिद्र ढूंढने वाले मौजूद थे ।उनके लिए श्रीराम की शक्ति को कम कर के आंकने वाली विचारधारा थी ।
आखिर वाली का वध श्रीराम ने क्यों किया?
अब सवाल ये भी उठता है कि जब सुग्रीव और वालि के बीच आपसी लडाई थी तो श्रीराम को क्या हक था कि वो वालि का वध करते ? तो इसका उत्तर भी आपको वाल्मीकि रामाय़ण से ही मिल जाएगा। चलिए देखते हैं कि जब श्रीराम ने वाली को आमने सामने के युद्ध में मार गिराया तो घायल वाली ने पहले तो श्रीराम पर ढेर सारे आरोप लगाए और जब इसके बाद श्रीराम ने उसे मारने की वजह बताई तो वालि का क्रोध क्यों शांत हो गया और क्यों वो श्रीराम की शरण में चला गया
जब श्रीराम वालि को आमने सामने के युद्ध में अपने एक बाण से मार डालते हैं तो वालि उनसे मरने से पहले पूछता है कि मुझे क्यों मारा क्योंकि मैं तो एक बंदर हूँ –
अधार्य चर्म मे सद्भी रोमाण्यस्थि च वर्जितम्।
अभक्ष्याणि च मांसानि त्वद्विधै र्धर्मचारिभिः।।
यानि” हम बंदरों का चमड़ा भी सत्पुरुषों के द्वारा धराण करने योग्य नहीं होता है । हमारे रोम और हड्डियाँ भी छूने योग्य तक नहीं होती । आप जैसे धर्माचारी पुरुषों के लिए मांस तो सदा ही अक्षभ्य है फिर किस लोभ से आपने मुझ वानर को अपने बाणों का शिकार बनाया।“ वालि श्रीराम पर ये आरोप भी लगाता है कि उन दोनों की आपस में तो कोई दुश्मनी नहीं थी फिर उन्होंने उसका वध क्यों किया ?
मामिहाप्रतियुध्यंत मन्येन च समागतम
यानि “मैं यहाँ आपसे युद्ध नहीं कर रहा था फिर बिना अपराध के आपने मुझे क्यों मारा”? यहाँ तक कि वालि श्रीराम पर ये भी आरोप लगाता है कि उन्होंने उसे छिप कर क्यों मारा ?
न मामन्येन संरब्धं प्रमत्तं वेद्धुमर्हषि ।।
इति में बुद्धिरुपत्पन्ना बभूवादर्शने तव।
यानि वाली कहता है कि “जब तक मैंने आपको देखा नहीं था तब तक मेरे मन में यही विचार उठता था कि दूसरे के साथ क्रोध वश जूझते हुए मुझको आप असावधान अवस्था में अपने बाण से बेधना उचित नहीं समझेंगे?” वालि यहाँ तक कहता है कि “आप अगर मेंरे सामने आकर युद्ध करते तो आप निश्चित ही मारे जाते ।”
रामद्रोहियों ने किया राम को बदनाम
वालि के इन सारे कथनों को ही राम द्रोहियों ने लिटरली यानि शबद्शः ले लिया है और इसी के आधार पर वो श्रीराम की आलोचना करने लग जाते हैं । किसी भी कथन के बारे में हमें ये जरुर देखना चाहिए कि कोई व्यक्ति किस अवस्था में और किस इंटेंशन से ये सारी बातें बोल रहा है ।
- पहली बात तो वालि ये सारी बातें क्रोध में बोल रहा था क्योंकि श्रीराम ने उसे मार डाला था ।
- दूसरे, वालि खुद धर्म के मार्ग पर नहीं था और उसने सुग्रीव की पत्नी का अपहरण कर लिया था, इसलिए वो धर्माचारी तो बिल्कुल नहीं था ।
- तीसरे, क्या आप रावण जैसे दुष्ट व्यक्ति की बात पर भरोसा कर सकते हैं कि वो सत्य बोलेगा तो फिर वालि कैसे सत्यवादी हो सकता है जबकि वो खुद एक पापात्मा था ?
तो वाली की सारी बातें सिर्फ क्रोध में कही जा रही थीं और वो अपने पापों को जस्टिफाई करने के लिए उल्टा श्रीराम पर ही आरोप लगाए जा रहा था ।
श्रीराम जानते थे वाली का सच
लेकिन, श्रीराम उसके इस सच को अच्छी तरह से जानते थे इसलिए वो शांत और गंभीर बने रहे । यहाँ तक कि महावीर और महाज्ञानी हनुमान जी भी सच्चाई जान रहे थे, इसलिए वो भी चुप रहे।आखिर में जब वालि ने अपना झूठ बार बार श्रीराम पर थोपने की कोशिश की तो श्रीराम ने उससे कहा कि “ मैंने जो किया है वो धर्म के अनुसार किया है । मैंने तुम्हें दंड दिया है, क्योंकि मैं तुम्हारे पापों का दंड देने के लिए योग्य व्यक्ति हूँ। “ वो कहते हैं कि
तां पालयति धर्मात्मा भरतः सत्यवानृजुः।
यानि “धर्मात्मा भरत इस पृथ्वी का पालन करते हैं”
तस्य धर्माकृतादेशा वयमन्ये त पार्थिवाः।
चरामो वसुंधा कृत्स्नां धर्मसंतानमिच्छवः।।
अर्थात- “उन भरत की तरफ से हम सभी ‘राजाओं’ को ये आदेश प्राप्त है कि जगत में धर्म के पालन और प्रसार के लिए यत्न किया जाए। इसलिए हम लोग धर्म का प्रचार करने की इच्छा से सारी पृथ्वी पर विचरते हैं।“
और फिर श्रीराम कहते हैं कि –
ते वयं मार्गविभ्रष्टं स्वधर्में परमे स्थिताः।
भरताज्ञां पुरस्कृत्य निगृह्मीमों यथाविधि।।
“हम सब लोग (राजा लोग) अपने श्रेष्ठ धर्म में ढृढ़तापूर्वक स्थित रह कर भरत की आज्ञा को सामने रख कर धर्म मार्ग से भ्रष्ट हुए पुरुषों को विधि पूर्वक दंड देते हैं।“
लेकिन इन श्लोकों को पढ़ते वक्त आपको ऐसा लग सकता है कि राम तो वन में थे और दूसरे वो तो राजा बने नहीं थे। राज्याभिषेक से पहले ही उन्हें वन में जाना पड़ गया था तो फिर वो खुद को राजा कैसे कह रहे हैं? तो यही विशेषता है वाल्मीकि रामायण की । आप इसे जितनी बार पढ़ते हैं आपको इसमें वाल्मीकि और भी गहरा उतारते है।
श्रीराम पशुओं के सम्राट थे भरत मनुष्यों के
जब श्रीराम को वनवास हो गया था और वो चित्रकूट में रह रहे थे तो भरत जी उन्हें मनाने के लिए आये थे। तब पहली बात तो भरत जी ने उनकी पादुका को श्रीराम के प्रतिनिधि के रुप में सिंहासन पर बिठाया था ।यानि राम की पादुका के जरिए श्रीराम की परोक्ष रुप से अयोध्या के राजा बन गये थे । फिर सवाल ये उठता है कि अगर राम अपनी पादुका के जरिए अयोध्या के राजा बने रहे तो फिर भरत को उन्होंने राजा के रुप मे क्यों संबोधित किया । तो इन दोनों संशयों का जवाब एक श्लोक से हमें मिल जाता है । इससे संबंधित एक श्लोक वाल्मीकि रामायण के अयोध्याकांड में मिला जो भरत और श्रीराम के मिलाप के वक्त का है –
वं राजा भरत भव स्वयं नराणां।
वन्यानामहमपि राजराणमृगाणाम।।
यानि “भरत तुम स्वयं मनुष्यों के राजा बनों और मैं जंगली पशुओं का राजा बनूंगा।“
यानि श्रीराम जंगल में रह रहे पशुओं और पक्षियों के राजा थे, जबकि भरत अयोध्या के ही नहीं बल्कि सारी पृथ्वी के मनुष्यों के राजा थे, क्योंकि राम किष्किंधाकांड में वालि को समझाते हुए ये भी कहते हैं कि ये सारी पृथ्वी इक्ष्वाकु वंश के लोगों की है और भरत इस वक्त सारी पृथ्वी के राजा हैं।
श्रीराम ने वाली के पापों का दंड उसे दिया था
राजा राम ने भरत के प्रतिनिधि या अधीन राजा के रुप में पशुओं का राजा बनने का फैसला किया था। एक राजा होने के नाते उन्होंने वाली को ये दंड दिया था क्योंकि वाली ने अपने ही भाई की पत्नी के साथ व्याभिचार किया था और सुग्रीव की पत्नी रुमा का अपहरण कर उसे कैद में रखा था।
इसलिए पशुपति श्रीराम ने सुग्रीव और उसकी पत्नी के साथ न्याय करने के लिए एक राजा होने के नाते वाली को दंड दिया । वालि को भगवान ने छिप कर मारा था या नहीं इसके बारे में तो हमें उन लोगों से पता चल जाता है जो वाली के ही पक्ष के वानर थे जिन्होंने वाली के पत्नी को जाकर सच सच बता दिया । अगर वालि के पक्ष के वानरों से जुड़ा ये श्लोक वाल्मीकि रामायण में नहीं होता तो वाली के इन आरोपो में कुछ दम भी हो सकता था।
श्रीराम ने वानरों की सहायता क्यों ली?
श्रीराम 14 साल तक के लिए जंगल के पशुओं के सम्राट बने रहे थे। वास्तव में राम पशुपति थे। पशुओं पर उनका अधिकार था इसलिए उन्होंने रावण को मारने के लिए भी न तो जंगली मनुष्यों, न निषादों और न ही अयोध्या के अधीन सारी पृ्थ्वी के मनुष्यों की सहायता ली, बल्कि उन्होंने वानरों और रीक्षों की सहायता ली। क्योंकि वो उस वक्त इंसानों के राजा तो भरत जी थे और श्रीराम तो 14 साल के लिए जंगली पशुओं और पक्षियों के सम्राट के तौर पर वन में घूम कर न्याय कर रहे थे। इसलिए वानर और रीक्ष भी जानते थे कि राम ही उनके सम्राट हैं, इसलिए उन्होंने अपने सम्राट की सेना मे शामिल होकर रावण के वध का कार्य पूरा किया ।